मन अनुरागी जोगी तेरा हम-तुम में कैसी ये अनबन

मन की सूती जिज्ञासा को काँटों पर मत रखना प्रियतम मन अनुरागी जोगी तेरा हम-तुम में कैसी ये अनबन ********************* कितने रुच रुच नेह निवाले सोच सोच कर रखतीं हो ! एकाकी होती हो जब तुम याद मेरी कर हंसती हो ! मत रोको अब प्रेम धार को कह दो कब होगा मन संगम मन की सूती जिज्ञासा को काँटों पर मत रखना प्रियतम..! ************************ पीत-वसन -प्रीत भरा मन पल-पल मुझसे मिलने आना कोई और निहारे मुझको बिना लपट के वो जल जाना प्रेम पथिक हम दौनों ही हैं प्रिय तुम ही अब तोड़ो मन संयम ! मन की सूती जिज्ञासा को काँटों पर मत रखना प्रियतम..! _______________________________________________ चित्र साभार:स्वप्न मंजूषा शैल व्हावा http://mishraarvind.blogspot.com _______________________________________________