बहुत मित्र जब नया घर बनाते हैं अथवा किराए के घर में शिफ्ट
होते हैं..तो वास्तु परामर्श के लिए मुझे बुलाते हैं.
वास्तु के सारे पैरामीटर्स देखने के बाद कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी
वास्तु प्रतिकूल मकान को भी मैं अप्रूव कर देता हूं.
बीते वर्षों में ऐसा अनेक बार हुआ है और उन मित्रों को वह
मकान खूब फला भी है. वहीं ऎसे भी मकान या दुकान हैं जो हर तरह से वास्तु अनुरूप है
किंतु वहां रहने वालों के जीवन में कोई बरकत नहीं है और कुछ भी ठीक नहीं चल रहा
है.दूसरी तरफ यह भी हुआ है कि किसी वास्तु अनुकूल मकान को मैंने रिजेक्ट कर दिया
है. क्योंकि भीतर से आने वाली आवाज ने कहा कि 'यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा है.'
तमाम तकनीकी ज्ञान और तर्क के बावजूद मेरे निर्णय का अंतिम आधार होता है -
"कैसा लगता है? "
'अंदर से क्या फील आती है? '
और लगभग सौ में सौ दफे, यह अंदरूनी आवाज सही बैठती है.फिर
यह बात सिर्फ मकान पर ही नहीं, जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर भी
लागू होती है.
जैसे किसी व्यक्ति का बीपी बढ़ा हुआ है या शुगर रीडिंग
ज़्यादा आ रही हो लेकिन उसे फील अच्छी बनी हुई है.
मसलन, गड़बड़ पैरामीटर्स के कोई लक्षण
देह पर प्रत्यक्ष प्रकट नहीं है.. तो यकीन मानिए उसे अधिक घबराने की जरूरत नहीं
है. उसकी समस्या दीर्घकालिक नहीं, तात्कालिक ही जानिए.
'कैसा लगता है' - यह अनुभव, हमारी
स्थिति की आत्मगत खबर है और यह अक्सर सच निकलती है.
लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि वह चिकित्सकीय परामर्श न
ले. बस इतना ही है कि इत्मीनान रखे. खामख्वाह के किसी डर, वहम या फोबिया का शिकार न हो. अन्यथा वह स्ट्रेस
में आकर अपनी स्थिति को और भी बदतर कर लेगा.
आपके बाबत, आपकी सबसे सच्ची और प्रामाणिक रिपोर्ट है- आपकी इनर वॉइस. 'कैसा लगता है?'
अगर आपको लगता है कि आप ठीक हैं या ठीक हो जाएंगे तो सच मानिए कि आप ठीक ही
हैं.
डॉक्टर के.के. अग्रवाल कहते थे - "ईलाज, रिपोर्ट का नहीं व्यक्ति का किया जाता है
"
ठीक होने का एहसास हमारी क्वांटम फील्ड में बदलाव शुरू कर देता है.
चेतना का संकल्प, पदार्थ को रुपायित कर देता है. और
यह इसलिए संभव है क्योंकि पदार्थ भी अंततः चेतना ही है.
एक ही मिट्टी, एक सी हवा और धूप लेकर भिन्न-भिन्न
रंग, रूप और गंध के फूल खिल उठते हैं. पौधे में अंतर्निहित
यांत्रिकी, एक ही पदार्थ से अपने अनुकूल घटकों का निर्माण कर
लेती है.
हमारे भीतर दो तरह की बुद्धिमत्ता है एक -तर्क और अनुभव से
अर्जित व्यक्तिगत बुद्धिमत्ता और दूसरी ब्रह्मांडीय प्रज्ञा. ब्रह्मांडीय प्रज्ञा, शरीर या विश्व के कॉन्स्टिट्यूएंट्स को
अलग-अलग नहीं देखती. वह सोडियम, पोटेशियम मैग्नीशियम की भाषा
नहीं जानती. उसे जो जरूरी लगता है वह उसका निर्माण, धूप,
हवा और पानी से भी कर लेती है. वह गेहूं के एक दाने से प्रोटीन भी
बना सकती है, कार्बोहाइड्रेट भी, स्टार्च
भी, फैट भी. इस
ब्रह्मांडीय प्रज्ञा पर भरोसा रखें.
बहुत बार ऐसा भी हुआ है कि जिस लकवा ग्रस्त खिलाड़ी को
आजीवन अपंग करार दिया गया था वह एक वर्ष बाद कोर्ट में खेलने आ गया. श्वसन तंत्र के कैंसर से जूझ कर आए व्यक्ति ने ऊँचे
पहाड़ पर झंडा गाड़ दिया.
क्यों ?
क्योंकि उन्होंने डॉक्टर्स की रिपोर्ट से अधिक अंदर से आने
वाली आवाज को सुना जो कह रही थी 'तुम
ठीक हो जाओगे.'
दवाइयां सिर्फ सपोर्ट करती हैं.
आपका शरीर ही आपका वास्तविक चिकित्सक है.
हमारे शरीर की प्रत्येक सेल में विज़डम भी है, हीलिंग पावर भी. डॉक्टर
के पर्चे को दरकिनार न करें किंतु उसे सपोर्टिव ट्रीटमेंट माने, प्रधान नहीं.
प्रधान ट्रीटमेंट तो चेतना की आवाज का लिखा पर्चा ही है."इनर वॉइस" एक अंतर्भूत कॉस्मिक
व्हिज्डम है, जो हमें मालूम और न-मालूम, सभी जानकारियों को एक साथ एनालाइज कर, एक विश्वसनीय
उत्तर देती है.
इस उत्तर में हमारे कॉन्शस ज्ञान के अलावा आध्यात्मिक, अनुवांशिकीय, अवचेतन
और संस्कारगत जानकारियों का डेटा भी समाविष्ट होता है. मगर यह प्रोसेसर इतना महीन
है कि इस तक पहुँच, विचारों के बहुत बड़े जखीरे के साथ संभव
नहीं है.
मौन, समर्पित, प्रार्थनामय
चित्त,सरल और संकल्पवान ह्रदय को यह इनर वॉइस बहुत साफ सुनाई
देती है.
इन सब बातों का यह अर्थ नही है कि हम अपनी रीज़निंग और मनुष्यता द्वारा अब तक
अर्जित ज्ञान को बलाए ताक रख दें.
किंतु तर्क के शोर में इतने भी बहरे न हो जाएं कि भीतर की आवाज को सुनने की
क्षमता ही खो बैठें.
इनर वॉइस, ईश्वरीय परामर्श भी है और
आशीर्वाद भी.
किसी व्यक्ति को पहचानना हो, कोई नया काम शुरू करना हो, कोई बड़ा निर्णय लेना
हो.. तब,
ध्यान से सुने कि भीतर से क्या आवाज आती है.
शुरू में आपकी बुद्धि और तर्क आड़े आएंगे किंतु धीरे-धीरे आप तर्क से परे उस
परम वाणी को सुनने की सामर्थ्य पैदा कर लेंगे कि - 'कैसा लगता है?'