"जिसने श्रीकृष्ण को जिया, चखा,और पिया - वह ओशो थे" "ओशो का न कभी जन्म हुआ न मृत्यु। वे केवल इस वसुंधरा पर 11 दिसंबर 1931 से 19 जनवरी 1990 तक भ्रमण करने आये थे"..अवतरण दिवस की अनंत कोटि शुभकामनायें..त्वदीय पाद पंकजम् नमामि देवी नर्मदे.. माँ नर्मदा के पवित्र जल और संस्कारधानी की पवित्र मिट्टी से..धर्म +अध्यात्म +दर्शन सहित विविध विधाओं के दुर्लभ रंग बिरंगे खूबसूरत और सुगंधित अमर पुष्प 🌸 विकसित हुए..कभी महर्षि गौतम के रूप में,कभी जाबालि ऋषि के रुप में ,तो कभी भृगु मुनि के रूप में,कभी महर्षि महेश योगी के रूप में, तो कभी आचार्य रजनीश के रूप में.. इनमें ओशो पारिजात (हरसिंगार) पुष्प 🌸हैं.. यह निर्विवाद सत्य है कि संसार के रंगमंच पर समय समय पर महान आत्माएं अवतरित होती हैं, जो अपनी दिव्य छवि का प्रकाश बिखेर कर अपने चरण चिन्ह, आने वाली पीढ़ियों के लिए छोड़ जाती हैं, जिससे भविष्य में भी उनका मार्गदर्शन होता रहे.. ऐंसी युगांतकारी आत्माओं में आचार्य रजनीश का नाम सदैव अमर रहेगा...संस्कारधानी में 21 वर्ष बीते और यहीं मौलश्री वृक्ष 🌳 के नीचे दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ..