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प्रेम का सन्देश देता ब्लॉग

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शुक्रवार, 17 मार्च 2023

My heart is beating, keeps on repeating I am waiting for you

 



(My heart is beating, keeps on repeating
I am waiting for you)

My love encloses, a plot of roses
And when shall be then, our next meeting
'Cos love you know
That time is fleeting, time is fleeting, time is fleeting

Oh, when I look at you
The blue of heaven seems to be deeper blue
And I can say that
God Himself, seems to be looking through (hoo-hoo)
Zu-zu-zu... zu-ru-zu, (that's what it sounds like)

I'll never part from you
And if it is so, when are we meeting
'Cos love, you know
That time is fleeting, time is fleeting, time is fleeting

Spring is the season
That rolls the reason of lovers who are truly true
Young birds are mating
While I am waiting for you (hoo-hoo)

Darling you haunt me
Say do you want me?
And if it so, when are we meeting
'Cos love you know
That time is fleeting, time is fleeting, time is fleeting

(My heart is beating, keeps on repeating
I am waiting for you)

My love encloses, a plot of roses
And when shall be then, our next meeting
'Cos love you know







शनिवार, 11 मार्च 2023

मुकुल के फागुनी दोहे


गंजों की4 होली भई, बहुतई भयो धमाल।
उचकत गंजे यूँ लगे, अंडे लेत उबाल ।।
सारे इक से दिखते, होली पर्व कमाल।
कौन करोड़ीलाल है,कहां छकौड़ी लाल।।
विजया को ऐसो नशा,सबरे लबरा मौन।
घरवाली से पूछते, हम तुम्हारे कौन ?
रंग जमा जब भंग का, होने लगा बवाल।
रंग सियासी भूलकर, मलने लगे गुलाल।।
मंद पवन मादक मदन,प्रियतम भाव विभोर।
पायल-ध्वनि मोहक लगे,शेष सभी कुछ शोर
नयनन भाए प्रीत रंग, प्रीत पवन हर ओर।
टेसू बोते वेदना, विरहन पीर अछोर।। 
प्रिय बिन बैरन-सी लगे पायल की झंकार।
हाथ निवाला ले खड़ा ओंठ करे इनकार॥ 
देह जगाए कामना, हाथ सजाते फूल।
दरपन तब बोले सुनो, भई प्रणय अनुकूल  ॥
मादक माधव माह यो, मिलन बिरह समझाय ।
प्रिय से दूर तनिक रहो, प्रीत दुगुन हुई जाय ॥
तापस का प्रिय राम है, ज्यों बनिकों को दाम।
प्रेम-रीति के दास हम, मुख वामा को नाम ।।
गिरीश बिल्लौरे मुकुल

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

तुम चुप क्यों हो कारण क्या है ?

 

तुम चुप क्यों हो कारण क्या है ?
गुमसुम क्यों हो  कारण क्या है ?

जलते देख रहे हो तुम भी, प्रश्न व्यवस्था के परवत पर ।

क्यों कर तापस वेश बना के, जा बैठै बरगद या छत  पर ॥  
हां मंथन का अवसर है ये  स्थिर क्यों हो कारण क्या है ?

अस्ताचल ने भोर प्रसूती, उदयाचल से उभरी शाम ।
निशा-आचरी संस्कृति में, नित उदघोष वयंरक्षाम ॥
रावण युग से ये युग आगे रक्ष पितामह रावण क्या है ?

एक दिवंगत सा चिंतन ले, चेहरों पे ले बेबस भाव ।

व्यवसायिक नकली मुस्कानें , मानस पे है गहन दबाव ॥

समझौतों के तानेबाने क्यों बुनते हो कारण क्या है ?

भीड़ तुम्हारा धरम बताओ-क्या है, क्या गिरगिट जैसा है ।

किस किताब से निकला है ये- धर्म तुम्हारा किस जैसा है ॥

हिंसा बो  विद्वेष उगाते, फ़िरते हो क्यों, कारण क्या है ?

बीता बरस एक युद्ध में,  कोने-कोने जलता देश ।

शान्ति कपोत उड़ाने को,जगह नहीं गगन में शेष ॥

लिखो कलम के वीरो जागो, सोये क्यों हो, कारण क्या है ?

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

कैसा लगता है ? डाक्टर सलिल समाधिया

बहुत मित्र जब नया घर बनाते हैं अथवा किराए के घर में शिफ्ट होते हैं..तो वास्तु परामर्श के लिए मुझे बुलाते हैं.

वास्तु के सारे पैरामीटर्स देखने के बाद कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी वास्तु प्रतिकूल मकान को भी मैं अप्रूव कर देता हूं.

 
बीते वर्षों में ऐसा अनेक बार हुआ है और उन मित्रों को वह मकान खूब फला भी है. वहीं ऎसे भी मकान या दुकान हैं जो हर तरह से वास्तु अनुरूप है किंतु वहां रहने वालों के जीवन में कोई बरकत नहीं है और कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है.

दूसरी तरफ यह भी हुआ है कि किसी वास्तु अनुकूल मकान को मैंने रिजेक्ट कर दिया है. क्योंकि भीतर से आने वाली आवाज ने कहा कि 'यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा है.'

तमाम तकनीकी ज्ञान और तर्क के बावजूद मेरे निर्णय का अंतिम आधार होता है -

"कैसा लगता है? "

'अंदर से क्या फील आती है? '

और लगभग सौ में सौ दफे, यह अंदरूनी आवाज सही बैठती है.फिर यह बात सिर्फ मकान पर ही नहीं, जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर भी लागू होती है.

जैसे किसी व्यक्ति का बीपी बढ़ा हुआ है या शुगर रीडिंग ज़्यादा आ रही हो लेकिन उसे फील अच्छी बनी हुई है.

मसलन, गड़बड़ पैरामीटर्स के कोई लक्षण देह पर प्रत्यक्ष प्रकट नहीं है.. तो यकीन मानिए उसे अधिक घबराने की जरूरत नहीं है. उसकी समस्या दीर्घकालिक नहीं, तात्कालिक ही जानिए.

'कैसा लगता है' - यह अनुभव, हमारी स्थिति की आत्मगत खबर है और यह अक्सर सच निकलती है.

लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि वह चिकित्सकीय परामर्श न ले. बस इतना ही है कि इत्मीनान रखे. खामख्वाह के किसी डर, वहम या फोबिया का शिकार न हो. अन्यथा वह स्ट्रेस में आकर अपनी स्थिति को और भी बदतर कर लेगा.

आपके बाबत, आपकी सबसे सच्ची और प्रामाणिक रिपोर्ट है- आपकी इनर वॉइस. 'कैसा लगता है?'

अगर आपको लगता है कि आप ठीक हैं या ठीक हो जाएंगे तो सच मानिए कि आप ठीक ही हैं.

डॉक्टर के.के. अग्रवाल कहते थे - "ईलाज, रिपोर्ट का नहीं व्यक्ति का किया जाता है "

ठीक होने का एहसास हमारी क्वांटम फील्ड में बदलाव शुरू कर देता है.

चेतना का संकल्प, पदार्थ को रुपायित कर देता है. और यह इसलिए संभव है क्योंकि पदार्थ भी अंततः चेतना ही है.

एक ही मिट्टी, एक सी हवा और धूप लेकर भिन्न-भिन्न रंग, रूप और गंध के फूल खिल उठते हैं. पौधे में अंतर्निहित यांत्रिकी, एक ही पदार्थ से अपने अनुकूल घटकों का निर्माण कर लेती है.

हमारे भीतर दो तरह की बुद्धिमत्ता है एक -तर्क और अनुभव से अर्जित व्यक्तिगत बुद्धिमत्ता और दूसरी ब्रह्मांडीय प्रज्ञा. ब्रह्मांडीय प्रज्ञा, शरीर या विश्व के कॉन्स्टिट्यूएंट्स को अलग-अलग नहीं देखती. वह सोडियम, पोटेशियम मैग्नीशियम की भाषा नहीं जानती. उसे जो जरूरी लगता है वह उसका निर्माण, धूप, हवा और पानी से भी कर लेती है. वह गेहूं के एक दाने से प्रोटीन भी बना सकती है, कार्बोहाइड्रेट भी, स्टार्च भी, फैट भी.  इस ब्रह्मांडीय प्रज्ञा पर भरोसा रखें.

बहुत बार ऐसा भी हुआ है कि जिस लकवा ग्रस्त खिलाड़ी को आजीवन अपंग करार दिया गया था वह एक वर्ष बाद कोर्ट में खेलने आ गया.  श्वसन तंत्र के कैंसर से जूझ कर आए व्यक्ति ने ऊँचे पहाड़ पर झंडा गाड़ दिया.

क्यों ?

क्योंकि उन्होंने डॉक्टर्स की रिपोर्ट से अधिक अंदर से आने वाली आवाज को सुना जो कह रही थी 'तुम ठीक हो जाओगे.'

दवाइयां सिर्फ सपोर्ट करती हैं.

आपका शरीर ही आपका वास्तविक चिकित्सक है.

हमारे शरीर की प्रत्येक सेल में विज़डम भी है, हीलिंग पावर भी.  डॉक्टर के पर्चे को दरकिनार न करें किंतु उसे सपोर्टिव ट्रीटमेंट माने, प्रधान नहीं.

प्रधान ट्रीटमेंट तो चेतना की आवाज का लिखा पर्चा ही है."इनर वॉइस" एक अंतर्भूत कॉस्मिक व्हिज्डम है, जो हमें मालूम और न-मालूम, सभी जानकारियों को एक साथ एनालाइज कर, एक विश्वसनीय उत्तर देती है.

इस उत्तर में हमारे कॉन्शस ज्ञान के अलावा आध्यात्मिक, अनुवांशिकीय, अवचेतन और संस्कारगत जानकारियों का डेटा भी समाविष्ट होता है. मगर यह प्रोसेसर इतना महीन है कि इस तक पहुँच, विचारों के बहुत बड़े जखीरे के साथ संभव नहीं है.

मौन, समर्पित, प्रार्थनामय चित्त,सरल और संकल्पवान ह्रदय को यह इनर वॉइस बहुत साफ सुनाई देती है.

इन सब बातों का यह अर्थ नही है कि हम अपनी रीज़निंग और मनुष्यता द्वारा अब तक अर्जित ज्ञान को बलाए ताक रख दें.

किंतु तर्क के शोर में इतने भी बहरे न हो जाएं कि भीतर की आवाज को सुनने की क्षमता ही खो बैठें.

इनर वॉइस, ईश्वरीय परामर्श भी है और आशीर्वाद भी.

किसी व्यक्ति को पहचानना हो, कोई नया काम शुरू करना हो, कोई बड़ा निर्णय लेना हो.. तब,

ध्यान से सुने कि भीतर से क्या आवाज आती है.

शुरू में आपकी बुद्धि और तर्क आड़े आएंगे किंतु धीरे-धीरे आप तर्क से परे उस परम वाणी को सुनने की सामर्थ्य पैदा कर लेंगे कि - 'कैसा लगता है?'


 

रविवार, 25 दिसंबर 2022

आने भी दो देख लेंगें, फसले-बहार को.

 *ग़ज़ल*

*आने भी दो देख लेंगें, फसले-बहार को.*

*क्योंकर कहो यूं, आप भी बेक़रार हो..!*

*आया जो यहाँ हमसे वो लेके ही गया,*

*रुसवाई ही मिली थी, इस खाक़सार को..*

*ज़ख्मों को साथ रखता हूँ ये वफादार हैं-*

*क्यों साथ रखूँ अपने, किसी रसूखदार को-*

*रिश्तों को सिक्कों से जब कोई तौलने लगे*

*न जाना उसके आंगन भाई हो या यार हो.*

*“माँ..! तेरे नाम के सिवा विरासत में कुछ नहीं*

*जबसे कहा है मुझको मुकुल, कर्ज़दार हो..*

*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

बनके अंबर ऐसी छतों पर छाना चाहता हूं ....!


##गिरीश_की_ग़ज़ल 
इज़ाजत दे तेरी सोहबत से जाना चाहता हूं .
हक़ीकत-तेरी, दुनिया को बताना चाहता हूं .
सिंहासन से सवालों का हश्र मालूम है मुझको-
अपनी आवाज़ का असर देखना चाहता हूं .
सियासत जी-हुजूरी और ताक़त से मुझे क्या ? 
हां अपने गीत, अपनी धुन में गाना चाहता हूं. 
कसीदे पढ़ने वाले और होंगे तेरी महफिल के-
मैं अपनी खुद को ही सुनाना चाहता हूं.
तेरी छत घर तेरा रसूख तेरा ही आशियाना है-
बनके अंबर ऐसी छतों पर छाना चाहता हूं. 
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*


रविवार, 16 अक्तूबर 2022

इक पैर का जलवा तुझको दिखाना होगा


 

घुप अंधेरा है कोई दीपक जलाना होगा ।

इन अंधेरों से अब आंख  मिलाना होगा।।

मेरे वज़ूद की वज़ह मैं ही हूं तू नहीं -

तेरा ऐलान हर दीवार से मिटाना होगा ।।

रश्क़ न कर,चल साथ मेरे कुछ दूर तलक

इक पैर का जलवा तुझको दिखाना होगा।।

बिन सिक्कों के तेरा जादू , जादू कहां ?

तेरी बाजीगरी पे अब सिक्के लुटाना होगा ।।

तू टपकती हुई छत है किसे मालूम नहीं?

अबके बरसात के पहले, चूने से भराना होगा ।।

जहां देखो वहां कांटों के सिवा कुछ भी नहीं-

जलेगी आग तो, इन्हें खाक में जाना होगा।।

                          गिरीश बिल्लोरे मुकुल


My heart is beating, keeps on repeating I am waiting for you

  (My heart is beating, keeps on repeating I am waiting for you) My love encloses, a plot of roses And when shall be then, our next mee...