किसे इंतज़ार होगा चांद का जब तुम सामने हो अँजोरी बिखेरतीं... मुस्कुरातीं एक आध्यात्मिक ऊर्जा की फुहारें ओस की बूंदों जैसी भिगो जातीं हैं..मन को..! आओ एक बार कि अद्वैत में खो जाएं..! चेतना की मदालस अँजोरी से धनाढ्य हुई इस मुखरित निशा के अछोर शामियाने में आओ मिलें और कि एक हो जाएं..!
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