तुम इस बार आए मेरे शहर तक वज़ह क्या थी कि न आए घर तक..

तुम इस बार आए मेरे शहर तक वज़ह क्या थी कि न आए घर तक... वरना हाथों से अपने इस तरह दिल को समझाना नहीं पड़ता.. तुम्हैं भी न आने का बहाना गढ़ना नहीं पड़ता.. न तुम लिखते कोई कविता विरह की न कोरें भिगो कर मुझको भी पढ़ना नहीं पड़ता.. आ जाते तो क्या परबत कोई पिघल जाता मुझसे मिलते इक पल क्या कोई नग़मा फ़िसल जाता...? तुम्हारे घर न आने की वज़ह जो भी हो लेकिन ग़र आ जाते तुम तो नईं कुछ बातें कर लेती हमारी रस भरी बातौं से हमारा मन बदल जाता अब फ़िर से वही चिंता तुम्हारी.. कैसे हो.. कहां होगे ? दिल को समझा रहीं हूं अच्छे होगे जहां होगे..!!