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मंगलवार, 3 जनवरी 2012

अपरा ताई की प्रीत

साभार:सत्यं वद:धर्मं चर से गूगल के ज़रिये
साभार: विकी-पीडिया
  चालीस बरस...पुरानी बात है. एक थी अपरा ताई.  अपरा ताई बोलते थे सब उनको सो हम काहे न बोलते हम भी अपरा ताई को  प्रेम करने वाली तो थीं पर बच्चों बूढ़ों बीमारों हताश-ज़िंदगियों के लिये उनकी मोहब्बत को आदर की नज़र से देखते थे बस्ती के लोग. हम नये नये युवा हो रहे लड़कों में अपरा ताई की बड़ी दहशत थी किसी सुकन्या को निगाहें उठा के देखने के पहले मन कांप उठता था कि बात कहीं अपरा ताई के कानौं तक  में   ताई क्यों, आज़ तुमने .. अर्र ये क्या तुम लगता है पैर कटवा के ही छोड़ोगी.. बदबू भरी मज़दूरन के पैर के घाव से रिसते मवाद को देखती रह गई अभी कल की ही बात थी उसे बाक़ायदा डाक्टर बाबू से इलाज़ करवा के आई थी...अपरा ताई को एक मिनट न रहा गया झट से कांधे पे लदे बस्ते का वज़न कम करने का मौका जो मिला ताई को. बस्ती में बन रहे सरकारी स्कूल की मज़दूरिन को मुकद्दम ने चिल्लाया.. काय, मर गई का जल्दी ला तसला.. अपरा ज़ोर से चीखी .."मुक्क...द्दम.....!
अपरा की आवाज़ सुन सकपकाया भागता भागता आया -क्या हुआ ताई ?
अपरा-इसके पैर का घाव देखा..?
"माफ़ करना ताई, मुझे मालूम न था इसने बताया भी तो नहीं काय चुन्नी बताई थी का..?"
       ताई आओ, बैठो आज़ इसको काम न बोलूंगा. हफ़्ते भर न बोलूंगा ताई..! मुकद्दम की बात सुन अपरा ताई के मुख पे अनोखी चमक आ गई बस्ते में रखे डिस्टिल वाटर को तामचीनी के कटोरे में डाला ताई ने और  टिंचर आयोडीन मिला के रुई से घाव धोया ड्रेसिंग की बस हो गया काम.यूं तो उस वक़्त ताई का स्कूल जाना  ज़रूरी था पर आप समझ सकतें हैं ताई जैसों के लिये उस व्क़्त की प्रियोरिटी  घाव पर मरहम लगाने से बड़ी और क्या हो सकती थी. सदा सबका दर्द उनको अपना सा लगता है.
                       छब्बीसेक बरस की अपरा ताई रूप रंग कद काठी से बेहद आकर्षक थी. लोक सेवा करते समय अपरा ताई की दिव्य आभा अहा..! शब्द किधर से लाऊं नि:शब्द हूं.. अपरा ताई देव लोक की की देवी से इतर मुझे कुछ नहीं लगती थी. उस युग में छब्बीस साल की अविवाहिता होना समाज के लिये एक अजीबो ग़रीब बात थी. ताई की अविवाहित होने क्या वजह थी बच्चे इस बात से बेखबर थे किसी बुज़ुर्ग ने कभी बताया भी तो नही पर सुना था कि अपरा ताई की शादी होने वाली थी तभी उनके मंगेतर का एक्सीडेंट हो गया इलाज कराते कराते वे भाग गये.. अस्पताल से ही.अपरा से मिले थे आखिरी बार उनने कहा था-अपरा, मैं ठीक भी हो गया तो एक बिना बांह वाला आदमी ही रहूंगा न तुम अब हमारी शादी का खयाल मन से निकाल दो.
अपरा -ताई ने बहुत समझाया पर देव ने सहमति असहमति के कोई शब्द न बोले. और एक रात अस्पताल से डिस्चार्ज होने के एन पहले भाग निकले अस्पताल से .
   इतना सभी जानते हैं इससे आगे जानने का किसी को मौका नहीं मिला था. कि फ़िर अपरा ताई की शादी क्यों न हुई..?
   मुझे मिला था सौभाग्य ताई ने बताया था-"पप्पू, तुम जानना चाहते हो कि मैं तुम्हारी बुआ जी की तरह ससुराल क्यों नहीं गई ?"
ताई को लगा मैं सुपात्र हूं तब उनने बताया कि पहले बताओ मन की हीन भावना का क्या प्रभाव होता है जीवन पर  ?
मैं:ताई, बहुधा लोग क्रोधी या पलायन वादी हो जाते हैं..
   ताई सहमत थी बोली मेरी शादी जिनसे हो रही थी वे  हीनभावना से ग्रस्त थे पलायन कर लिया उनने तब से सदा मेरे मन में सब के लिये आशंका रहती है कि -"कहीं हीनता उसे क्रोधी या पलायन वादी न बना दे "
लेकिन ताई आप शादी करके भी किसी की भी हीनभावना खत्म कर सकतीं थीं आप शादी कर सकतीं हैं.
"न,पप्पू मैं संकल्प के बीच अब किसी बंधन को स्वीकार ही नहीं कर सकती.
   एक तरह से ताई ने मुझे अपने मन से हीनभावन को तिरोहित करने का संदेश दे रही थी जो उनका जीने का मक़सद था. ताई क्या आप भी तो जानते हैं कि मुझे पोलिओ है बस ताई का संदेश एकदम दिलो-दिमाग पर छा गया जिस पर आज़ तक कायम हूं. ताई की कहानी में मेरा भी एक सफ़्ह जुड़ा है.
       आप सोच रहें होंगे न कि ताई का क्या हुआ तो जान लीजिये ताई ने पैंतीस बरस की उमर में तय किया कि वे अब शादी करेंगी वर कौन होगा सब सोच रहे थे.
     सबको पता हुआ कि  ताई पंद्रह बरस बाद किसी से शादी करने जा रही है वो भी एक अधेड़ उम्र के आदमी से जो असामान्य तो न था पर आम आदमी भी न था अजीब सा था वो सरकारी नौकर था बस्ती में पोस्टिंग हुई थी उसकी पर जब भी उसके दफ़्तर गया तो पाया कि वो बस एक हाथ से काम करता देखा गया क्लर्क था एक हाथ से बैंक के खाते बही भरने वाला ही था ताई जिससे शादी करने जा रही थी उनकी तुलना आज के निक-बोयेसिस से नहीं की जा सकती पर हां ताई का साथ होने पर वो सब कुछ करेंगें इतना यक़ीन मुझे हो चला था कि आत्म-विश्वास से भर देंगी अपरा ताई . आखिर ताई ने अपने सीने में सपने के राजकुमार को यूं न बसाया था कितनी प्रतीक्षा करनी पड़ी थी उनको.
फ़िर क्या ?
कुछ नहीं  काफ़ी दिनों तक ताई सपरिवार लोक सेवा करती रही लोगों के मन से हीन भावना निकालती ताई दिव्य थी है न..?  

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