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मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

प्रेम के तिनकों पर लपकतीं संस्कृति की लपटें


प्रेम संसार की नींव है जिसे किसी को नकारने में शर्म नहीं आती क्योंकि उसके पीछे फ्रायड है । फ्रायड एक भयानक सोच को चाहे अनचाहे रोप गया । जबकि प्रेम ऐसा नहीं जैसा फ्रायड ने सोचा है । प्रेम के अंकुरण से विश्व में सृष्टि के सृजन की अनुभूति होती है । प्रेम पाखण्ड नहीं हैं प्रेम दुर्वाशा भी नहीं प्रेम जीवन के उदयाचल से अस्ताचल तक का स्नेह कवच है ।
प्रेम किसी को भी कभी भी कहीं भी हो सकता है फ्रायड सुनो ये विपरीत लिंगी के बीच हो ऐसा नहीं ये समलिंगिंयों यहां तक कि जड़ से भी होता है ।
बूढ़े लोग अपना शहर छोड़ने में कतरातें हैं तो आपका पालतू भी आपके बिना बेचैन रहता है ।
बहुत बरसों से  मुझे हरि न मिला ।  हरि रेलवे में गैंगमेन था शाम को आता था बालपन में हरि मुझे बहुत प्यार करता था कुछ दिनों तक न दिखा माँ बतातीं थी मुझे तेज़ बुखार आ  गया था तेज़ तीन चार दिन तक । बिना रोगाणु बुखार का अर्थ क्या था । हरि के गांव से लौटते बुखार गायब ?
प्रेम की वज़ह प्रेम है तो समाधान भी प्रेम ही है । कहाँ राम कहाँ हनुमान कोई योग नहीं एक वनचर दूजा कुलीन क्षत्री राजकुल का बेटा ? प्रेम के सूत्र में बंधे दौनों इतिहास में दर्ज हैं ।
            एक बार तीन माह ट्रेनिंग में रहने के कारण भतीजे को न मिल सका घर लौटा तो घर के दरवाजे पर भतीजा मेरी गोद में आया कुछ देर थ अपलक मुझे देख अचानक ताबड़तोड़ मुझ पर झापड़ बरसाने लगा मानो पूछ रहा हो तो कहाँ था  ।
         फिर इतना ज़ोर से सीने से चिपक गया मानों उसने दुनियाँ का सब कुछ हासिल कर लिया हो । 9 से 10 माह की उम्र में चिन्मय का प्रेम और कैसे व्यक्त हो सकता था ? आप ही सोचिये ... अगर प्रेम संसारी बुनियाद नहीं तो क्या है ।
प्रेम उन्मादी होता है तो संवादी भी क्योंकि वो उन कणों का संग्रह है जो एकीकृत होकर ऊपर से नीचे की ओर बहता है सरिता सरीखा मिलता है तो पर्वत को भी चीर देता है जैसे धुआंधार तब वो उन्मादी है पर अवसर पर रोक न हो तो कछार में सबको सुख देता है ।
प्रेम का आधार वाक्य *सर्वे जना सुखिनः भवन्तु* है । वरना सूफी इसे स्वीकार कैसे करते । प्रेम दैहिक ही है तो साधु इसका जगह जगह ज़िक्र न करते । प्रेम मेरे और ईश्वर के बीच का मार्ग है उसमें अवरोध पैदा मत करना संस्कृति के नाम पर मूर्ख हो जब तुम सारी कायनात को एक ब्रह्म की उत्पत्ति मानते हो तो संत वैलेंटाइन बुरा क्यों ?
मैं प्रेमी हूँ मैं प्रेमिका हूँ इतना सोच के ईश्वर के करीब हो जाता हूँ । तुम संस्कृति के नाम पर राक्षसों सा बर्ताव न करो मुझे प्रेम करने दो खुले आम करने दो पूजा है भाई ये प्रेम और पूजा छिप के कौन करता है भला ?
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

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