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रविवार, 17 दिसंबर 2017

भीगा भीगा परबत

एक पल में जान निकालने वाली विरह की तपन के नज़दीक बैठे बैठे में अचानक हताशा और कसक के बीच हिचकोले लेती नाव सी सिर्फ और सिर्फ बहाव के साथ बहते हुए तुम्हारे पास आने को कसमसाती सी बेसुध हो जातीं हूँ । आज जब उसने बरसों पुरानी बात याद दिलाई तो एक एक कर मैं तब की सारी घटनाओं को सिंक्रोनाइज कर रही हूँ । आज मैंने पूछ ही लिया कि- हाँ मुझे तुमसे शिकायत है .  तब क्यों न बोले तुम जो सरिता के उसपार बैठे बैठे 30 साल बाद अपनी भूल को कबूल कर रहे हो ? 
  वो -  कैसे करता श्यामली कायर नहीं था  पर परिवार कॅरिअर सब देखना था ।  सोचा था  कुछ दिन बाद  बहनों के विदा होते ही मैं अभिव्यक्त कर दूंगा ।
  मैं - भला कोई इतना संयत कैसे हो सकता है कि अपनी बात न रखे । 
  वो- अच्छा बताओ श्यामली मेरी ज़गह तुम होतीं तब क्या करतीं ?  
  मैं- वही जो तुमने किया पर में स्त्री थी न डरती थी कि पता नहीं क्या होगा सामाजिक प्रतिबंधों का सबसे बड़ा असर लड़कियों पर ही होता था न तब !
 तुम पुरूष हो  मुझे कहते तो !
वो - हाँ कह देता , तीस साल पहले कह देना था मुझे कि मैं ....... पर तुम क्या रियेक्ट करतीं ये सोच के न किया फिर घर कॅरिअर समाज सब देखा सोचा जॉब के बाद कह दूंगा , सोचता रहा सोचते सोचते एक दिन जब तुम्हारे घर से वापस लौट आया तो वज़ह में खड़ा न था वजह थी परिस्थितियां । अच्छा चलो अगर कह देता कि श्यामली - विल यू मैरी मी ! 
    मुझे  इस सवाल से आने का एहसास पहले से ही बेचैन थी अपलक आकाश को देखती  दीर्घ अंतराल के बाद मैनें कहा -  कुछ तो कहते रुक तो जाती परिस्थितियों की अनुकूलता तक के लिए !
    वो :- श्यामली विरह की तपन से कुंदन हो गया हूँ । प्रेम मरता नहीं सदानंद है तुमसे मुझे दैहिक लगाव न था सच्चा प्यार था जो आज भी है । कसक थी तड़प थी शब्द भी थे बस परिस्थितियाँ साथ न थीं न मेरे न तुम्हारे ।
    सोचतीं हूँ तुरन्त जाकर अंकपाश में समा जाऊं समर्पित कर दूं प्रिय को पर अब मैं निमिष की तरह परिस्थितियों से बंधी हूँ न बिखरूँगी न निमिष मुझे बिखरने देगा ।
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        30 बरस 30 दिन के बाद निमिष से मिलूँगी । जाने क्या रिएक्शन होगा । शायद मुझे बांहों में भर लेगा । न वो ऐसा न करेगा वो अनुशाषित है 
सैकड़ों विचारों के आने जाने का सिलसिला कब तक जारी रहा मुझे याद कहाँ बस इतना याद है कि गरम चाय लेलो की आवाज़ ने जगा दिया बस सेवा घण्टे बाद ट्रेन निमिष तक पहुंचने वाली है । कटनी पार करते ही धड़कनैं   प्रीत के प्रथम मदालस एहसासों के कारण तेज़ होतीं चलीं गईं । और मैं बेचैन । 
    निमिष प्लेटफार्म पर न थे , बाहर कार में इंतज़ार करते उनको देख दहक उठी हूँ मैं ।
    निमिष ने मुझको  देख कैसे खुद को संयम के बंधन बांधा होगा मुझे यकीन नहीं हो पा रहा है । 
   अचानक निमिष की आंखों पर मेरी नज़र पड़ी एक भीगा पर्वत देख रोमांचित हूँ ।  

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