मादक हो तुम मदिरालय फिर क्यों जाना

चित्र : राजा रवि वर्मा मादक हो तुम मदिरालय फिर क्यों जाना क्यों कर मद क्रय कर फिर घर लाना ..!! जब मानस में मधु-निशा आभासित हो- तो फिर क्यों कोई मदिरालय परिभाषित हो विकल कभी अरु कभी तुम्हारा मुस्काना ! मादक हो तुम.....................!! तुम संग मिलन कामना अर्चन से दोगुन विरह तपस्या से भी होता है प्रिय चौगुन प्रेम स्वर्ण का ज्यों तप के गल जाना !! मादक हो तुम.....................!! लौहित अधर धर अधर धराधर मद धारा - ज्यों पूनम निशि उभरे सागर का धारा ! यूं उर -ओज की दमक मुख पर आना !! मादक हो तुम.....................!!