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बुधवार, 22 सितंबर 2021

बारूद के ढेर पर बैठा पाकिस्तान

 

पाकिस्तान की ग्ले की फांस बने दो आंदोलन उसकी अस्थिरता का सबसे मुख्य कारण है इन दिनों । जब से सोशल मीडिया पर आवाज़ बुलंद करने का अवसर मिला है आम आदमी को तबसे वैचारिक आंदोलनों को बल मिला है । सिंधु स्वतंत्रता की लहर 1967 में  जी एम सैयद की कल्पना से उभरी है। यह आंदोलन एक साहित्यिक भाषाई आंदोलन था जब पाकिस्तान में उर्दू भाषा राष्ट्रभाषा बनाने का निर्णय लिया गया, इस आंदोलन में आगे चलकर पीर अली मोहम्मद राशिद का भी बहुत अधिक योगदान जीएम सैयद के साथ देखा गया था। वर्तमान में इस आंदोलन का नेतृत्व अल्ताफ हुसैन के हाथों में है । 
  सिंधी देश जिसे सिंधु देश के रूप में वहां के लोग समर्थन दे रही है उनकी आबादी 7 करोड़ है। नक्शे में आप ध्यान दें तो पाएंगे कि उसकी पूर्वी एक सीमा भारत से मिलती है।

इस आंदोलन की एक और वजह थी औद्योगिक एवं व्यापारिक रूप से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का 70% हिस्सा सिंध प्रांत से पाकिस्तान को हासिल होता है। परंतु इसके विपरीत उनका महत्व ओम भागीदारी पाकिस्तान की राजनीतिक गतिविधियों में लगभग नगण्य है। इसके विपरीत सत्ता का पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेसी में पाकिस्तानी पंजाब का दबदबा है।
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता आतंकवाद तथा तालिबानी चिंतन पर आधारित टीटीके जैसे संगठनों से नकारात्मक रूप से प्रभावित एवं पीड़ित जनता अब शांति चाहती है। यह आंदोलन बलोच आंदोलन से कुछ अधिक स्ट्रांग और व्यवस्थित है। आंदोलनकारियों का दावा है कि अगर उन्हें एक ऐसा बिंदु मिल जाए जहां से आंदोलन निर्णायक हो सके आजाद होने से सिंधु देश नहीं कुछ दिन या कुछ घंटे लगेंगे। इस वीडियो में आप पाकिस्तानी सिंधी आंदोलनकारी को सुन रहे हैं। आपने यह  सुना होगा कि आंदोलनकारी जिस बिंदु की कल्पना कर रहे हैं उस बिंदु को भारत का खुला सामरिक समर्थन के रूप में पहचाना जा सकता है। परंतु भारत के विरुद्ध पाकिस्तान अब कभी भी कन्वेंशनल युद्ध नहीं कर सकता। पाकिस्तान  आर्मी नियंत्रित डेमोक्रेसी आई एस आई तथा आर्मी सभी जानते हैं कि अगर अब भारत से युद्ध हुआ तो पाकिस्तान सिंधु देश से हाथ धो बैठेगा।

    उधर बलूचिस्तान अपनी आजादी के लिए पूरी तरह से   बिसात बिछा रहा है . 
   विश्व के सभी महत्वपूर्ण देश चीन और टर्की को छोड़कर पाकिस्तान के प्रति सकारात्मक रुझान नहीं रखते। यही है भारत की कूटनीतिक सफलता। आपको याद होगा कि सन 1971 में पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में बदलना पाकिस्तान की सियासत में पंजाब के दबदबे एवं संस्कृति विविधता थी जैसे पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेटिक सरकार अब तक नहीं समझ पाई है।





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