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बुधवार, 5 मई 2021

मेरा अनाभिव्यक्त प्रेम और तुम


       33 साल पहले निक्की से प्रेम की अभिव्यक्ति ना कर पाया सुयश अपने आप में अपराध बोध लेकर जी रहा था। ऐसा नहीं कि सुयश ने कोशिश नहीं की घर तक भी गया। परंतु दरवाजा खटखटाया बिना लौटना ही उचित समझा। सोचता रहा कि जॉब लग जाए फिर बात करूंगा ! और फिर दूसरा मसला यह भी था कि पता नहीं निक्की मुझे स्वीकार की कि नहीं। स्वीकारती ना स्वीकारती यह प्रमुख समस्या नहीं समस्या थी पता नहीं जॉब कब तक लगेगी अगर जॉब ना लगी तो। मध्यवर्ग के परिवारों में प्रेम कुछ यूं ही आकार लेता है और फिर किसी ना किसी कारण से प्रेमी अचानक ऐसे पथ पर खो जाता है जहां से प्रेम पथ पर वापस लौटना नामुमकिन होता है। फिर एक दिन अप्वाइंटमेंट लेटर मिलने पर सुयश इस बात को लेकर खुश था कि आज मैं अपने प्रेम की अभिव्यक्ति अवश्य कर दूंगा। इससे पहले कि वह अपनी बात रखता पता चला  निक्की की शादी होने वाली है। नियति के निर्णय के सामने सुयश ने घुटने टेक दिए। एक जबरदस्त अपराध बोध और हताशा लेकर सुयश जीवन से लगभग असंतुष्ट हो गया था। अपने आप को अपना ही अपराधी समझने वाला सुयश समझ चुका था कि अब जब वह अपने प्रेम को व्यक्त नहीं कर सका तो वह इस काबिल भी नहीं कि प्रेम कर सके ।
   कथक के अल्फाबेट से कोसों दूर रहता था वह। उसे क्या मालूम कि यह ता धीन ता धीन क्या है। पर अपलक बड़ी श्रद्धा से इस कला मानो उसे मोहब्बत हो गई हो। तय नहीं कर पा रहा था कि उसका इश्क कला के लिए है या कलाकार के लिए।
    अपलक देखता रहता बस उसके खयालों में देश तक दूर तक कुछ सपने हुए थे उसके मानस पटल पर। शायद उसे प्रेम कहते हैं..?
पता नहीं से प्रेम कहते भी हैं या नहीं बहुत दिनों बाद तय पाया कि नहीं यही मोहब्बत है और मोहब्बत  का इजहार कर देना चाहिए।
     उसकी चुलबुली हंसी सुनने निक्की के क्लास रूम में ठहर जाता। और फिर खुद ब खुद मुस्कुराता आगे बढ़ जाता अपनी क्लास की ओर जहां वही बोझिल बेकार से सब्जेक्ट कंस्टीटूशन ऑफ़ इंडिया टॉर्ट एविडेंस एक्ट पार्टनरशिप एक्ट यानी कुल मिलाकर बेवज़ह से सब्जेक्ट । एक कलाकार को आप ऐसे रूखे सूखे सब्जेक्ट पढ़ाएंगे यह कलाकार की मजबूरी है कि वह इन सब्जेक्ट को पढ़ रहा हो तो अजीब नहीं लगता क्या?
   उसे बहुत अजीब रखता था इन विषयों को पढ़ना उन पढ़ना चाहता था कविता संगीत जो प्रेम की अभिव्यक्ति का मार्ग प्रशस्त कर दे। बताओ भला ऐसी भी कोई शिक्षा व्यवस्था है जिसमें एक प्रेम का एक पूरा का पूरा सब्जेक्ट हो। संस्कृत होती तो अभिज्ञान शाकुंतल पढ़ लेता अंग्रेजी पढ़ता तो शेक्सपियर पढ़ लेता पर यह कालाकोट पहनाने वाला सब्जेक्ट उफ़ ।
    मां ने पूछा कल तुम्हारा पेपर है पढ़ाई करना है !
  ना मुझे नहीं पढ़ना सब मालूम है कल एविडेंस एक्ट का पेपर है पढ़ लूंगा और पड़ा हुआ है कहीं से भी पूछिए मैं बता दूंगा मां आज कविता लिखने का मन कर रहा है। वो जानती थी मां जो ठहरी उसे मालूम था कि मैंने तैयारी पूरी कर ली होगी तभी तो कविता लिखने में मसरूफ हूं बिना कुछ कहे चली गई।
वो प्रेम-कविता कुछ इस तरह  थी
रख देता हूं अक्सर नींद
तुम्हारी यादों की मंजूषा में
बातें करता हूं
देर तक तुमसे
जबतक तुम अपने
माथे के दोनों और लटकती हुई
पलकों को पीछे सेट कर लेती हो
फिर अचानक सोचता हूं
कि मन की बात कह दूं
पता नहीं क्यों
रुक जाता हूं
पता नहीं कब कह पाऊंगा
कैसे कर पाऊंगा मुझे तुमसे..!
     कविता प्रेम की पहली कविता तो ना थी पर इस मायने में पहली कविता बन गई क्योंकि इस कविता ने रोमांच पैदा कर दिया था रोमांस की ।
    याद है ना कॉलेज का वह आखिरी दिन तब मैंने सोच लिया था आज कह दूंगा पर वही कि पता नहीं तुम्हें अच्छा लगेगा या नहीं स्वीकार करोगी या नहीं?
    विश्वास तो था कि मेरे प्रेम प्रस्ताव को स्वीकार कर लोगी।
    उस दिन अचानक कॉलेज में तुम्हें ना पाकर जानती हो कितना गुस्सा आया था उतना  जितना की जीवन में कभी भी ना आया होगा । बाहर ग्राउंड में बैठा रहा। और फिर उठ कर वापस घर।
   तुम्हें क्या मालूम उस दिन खाना बे स्वाद था । नींद गहराई भी नहीं उस रात झपकी ज़रूर लगी थी । हां निक्की जब पलकें झपकीं थी तुम्हारा खिलखिलाता चेहरा सामने था सोचा अब कह दूं इजहार ए इश्क बयां करने का इससे बेहतर और कोई पल नहीं।
    फिर पलक खुल जाती है सामने कुछ भी नहीं कोई भी नहीं तुम भी नहीं।
   यह एक अजीब सी कशिश बेबसी सब कुछ इस इर्द गिर्द। और मन मन का क्या इसलिए समझाना तो उसके लिए बाएं हाथ का खेल था।
            इतना लंबा चौड़ा वृत्तांत सुनकर निक्की का चौंकना स्वाभाविक था . 
निक्की- यह बात आज 32 साल बाद मुलाकात हुई मुलाकात नहीं कह रहे हो।
सुयश - हां निक्की सच है पर मैंने अभिव्यक्त करने की कोशिश नहीं की थी।
निक्की - यह कोशिश क्या होती है
सुयश - तुम क्या जानो कोशिश क्या होती है..?
निक्की - कुछ तो कोशिश समझ में आती थी कभी-कभी पर सोचती थी कि शायद भ्रम है !
सुयश - तो तुम्हें ही अभिव्यक्त कर देना था ना अपने मन की बात पूछ लेना था?
निक्की - अच्छा बताओ चाय लोगे या कॉफी या कुछ और
सुयश - कुछ और का मतलब...!
निक्की - कितने गंदे हो..!
सुयश - आशय गंदे हैं मेरा मतलब तो साफ साफ स्नेक्स  से था ।
निक्की - हां स्नेक्स भी
सुयश - वेटर एक एक चाय और सैंडविच
निक्की - नहीं सैंडविच एक मंगा लो आधा आधा खा लेंगे ।
सुयश - ठीक है एक सैंडविच...! चलो कम से कम आधा-आधा
निक्की - आधी आधी गलतियां बांट लेते हैं अपनी पर अब वापस नहीं लौट सकते
सुयश - वैसे भी मैं टाइम मशीन पर भरोसा नहीं करता। ना उस टाइम पर लौट आ जा सकता है ना वह दिन वापस लाए जा सकते हैं आज।
निक्की - बात सही है पर अब क्या स्थिति है
सुयश - हम लक्ष्मण रेखाओं को पार नहीं करेंगे मेरा उद्देश्य सिर्फ इतना था कि जीवन में वह बात जो व्यक्त नहीं कर सका सो अभिव्यक्ति हो गई। बस एक अपराध बोध से मुक्त हो गया आई लव यू
निक्की - आई लव यू
सुयश - ( इस बीच वेटर दो चाय और एक सैंडविच लेकर आ गया वेटर की ओर देखते हुए) लो भाई बहुत जल्दी ले आया यूं तो बहुत इंतजार कराते हो . निक्की की और देखते हुए लो भाई
निक्की - गहरी सांस छोड़ते हुए लाइए सैंडविच आधा-आधा कर देती हूं।
    एक दूसरे की ओर देखते दोनों ही अतीत में शायद खो जाते। कुछ मिनट अधीर भाव से एक दूसरे की आंखों में डूबते उतराते महसूस करने लगे।
सुयश - किधर खो गईं आप 
निक्की - आप में ( फिर आंखें झुका कर निक्की ने पूछा ) और आप
सुयश - मैं अपनी गलतियों खो चुका हूं
निक्की - बार-बार उसे गलती मत कहो समय लौटकर नहीं आएगा नदी के किनारों की तरह समानांतर रहो ताकि साथ बना रहे
सुयश - सही कहा बीते दिनों को याद करना और खुद को अपराधी बनाए रखना ठीक नहीं ।
निक्की - आज हम लौट रहे हैं कामकाज लगातार गैरमौजूदगी ठीक नहीं।
सुयश - ठीक है दिल अभी भरा नहीं
      दोनों अतृप्त होने की कशिश को लेकर अपने अपने रास्ते चल देते हैं






  
   

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