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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

प्रिया, तुम तो हो रँगरेजन


छाया :- मुकुल यादव
मन में आकर तुम ने मेरे पीर भरा जोड़ा क्यों नाता . अपनी अनुबंधित शामों से क्यों कर तोड़ा तुमने नाता …………………………………..!! 
मैं न जानूं रीत प्रीत की, 
 तुम ने लजा लजा सिखाई.. 
इक अनबोली कहन कही 
 राह प्रीत की मुझे दिखाई 
इक तो मन मेरा मस्ताना- 
यूँ मंद मंद तेरा मुस्काना .. 
भले दूर हो फ़िर तुमसे.. 
 बहुत गहन है मेरा नाता..!! मन में आकर तुम …………………………………..!!
 मन आंगन में स्वप्न सलोने, 
 खेलें जैसे भोला बचपन । 
कैसे करूँ अभिव्यक्त स्वयं को 
मन का भी तो है अनुशासन . ..
प्रिया हो तुम तो रंगरेजन .
तुमको पत्थर रंगना  है आता !! 
मन में आकर तुम ……………………………..!! 
 छायाचित्र :- Mukul Yadav 
शब्द संयो.:- Girish Billore Mukul

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