प्रेम का सन्देश देता ब्लॉग

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सोमवार, 13 अप्रैल 2020

प्रणय पिपासा प्रेम नहीं प्रिय

*सुप्रभात शब्द साधक-साधिकाओं को*
*यह रचना भोर काल के सात्विक चिंतन की परिणीति है..! आप इसे किस दृष्टिकोण से स्वीकारेंगे यह आपकी टिप्पणियों से संसूचित होगा*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻

प्रणय पिपासा प्रेम नहीं प्रिय
प्रेम को अब विस्तार तो दे दो ।

प्रेम के पथ के पथचारी को
भय कैसा कैसी अभिलाषा ।
न तो पाने की लालच ही 
खोने की जाने परिभाषा ।।
साहस कर आया है जो द्वारे -
प्रीत-दृष्टि एक बार तो दे दो ।।

गीत लिखो या ग्रंथ लिखो
सबके सब ही अर्थहीन से ।
मादक रूप चपल यौवन के
सन्मुख तुम क्यों दीनहीन से।।
प्रीत पराजित-रुदन कहां है-
मुखर निमंत्रण इस बार तो दे दो ।।

जो दुर्बल हो वह प्रेमी कैसा 
जो प्रेमी वो ही बलशाली ।
प्रेम वाटिका तक जाके देखो
मन-मानस है जिसका माली ।।
अमरबेल से शोषित तरुओं को
कर संरक्षित अरु प्यार भी दे दो ।।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

प्रिया, तुम तो हो रँगरेजन


छाया :- मुकुल यादव
मन में आकर तुम ने मेरे पीर भरा जोड़ा क्यों नाता . अपनी अनुबंधित शामों से क्यों कर तोड़ा तुमने नाता …………………………………..!! 
मैं न जानूं रीत प्रीत की, 
 तुम ने लजा लजा सिखाई.. 
इक अनबोली कहन कही 
 राह प्रीत की मुझे दिखाई 
इक तो मन मेरा मस्ताना- 
यूँ मंद मंद तेरा मुस्काना .. 
भले दूर हो फ़िर तुमसे.. 
 बहुत गहन है मेरा नाता..!! मन में आकर तुम …………………………………..!!
 मन आंगन में स्वप्न सलोने, 
 खेलें जैसे भोला बचपन । 
कैसे करूँ अभिव्यक्त स्वयं को 
मन का भी तो है अनुशासन . ..
प्रिया हो तुम तो रंगरेजन .
तुमको पत्थर रंगना  है आता !! 
मन में आकर तुम ……………………………..!! 
 छायाचित्र :- Mukul Yadav 
शब्द संयो.:- Girish Billore Mukul

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