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रविवार, 22 जुलाई 2018

बाल विकास भविष्य के आदर्श भारत की आधारशिला है : पूर्व महाप्रबंधक भारतीय रेल सेवा डॉ आलोक दवे



          "बच्चों में सदाचार वृत्तियों का बीजारोपण करने का दायित्व माता-पिता का ही है । बदलते परिवेश में अब अधिक सजगता एवम सतर्कता की ज़रूरत है ।आज संचार माध्यमों के ज़रिए जो कुछ भी हासिल हो रहा है उससे बच्चों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को लेकर हर अभिभावकों में चिंता व्याप्त है । अब ज़रूरत है 5 से 10 वर्ष की आयु तक के बच्चों से सतत संवाद करते रहने की क्योंकि हर बच्चा अनमोल है" - तदाशय के विचार पूर्व महाप्रबंधक भारतीय रेल सेवा डॉ आलोक दवे ने बालभवन में आयोजित *बदलते सामाजिक परिवेश में अभिभावकों के दायित्व* विषय पर आयोजित आमंत्रित  अभिभावकों के सम्मेलन में बोल रहे थे । श्री दवे सेवा निवृत्ति के उपरांत सत्य साईं सेवा समिति में बालविकास की गतिविधियों के लिए मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के प्रभारी भी हैं ।


सम्मेलन का शुभारंभ करते हुये संस्कार शिक्षा प्रशिक्षक (मानसेवी) डॉ. अपर्णा तिवारी, ने बालभवन में 2010 से संचालित संस्कार कक्षाओं का संक्षिप्त विवरण देते हुए सम्पूर्ण बाल विकास में बच्चों के लिए संस्कार शिक्षा की उपयोगिता एवम औचित्य पर विस्तार से विचार रखे । श्रीमती पुनीता उपाध्याय ने विजुअल माध्यम से पॉवर-प्वाइंट प्रजेंटेशन के ज़रिये बच्चों के लिए के दायित्वों का तथ्यात्मक विश्लेषण करते हुए बच्चों के प्रति जागरूक किया ।

आयोजन के दौरान प्रशिक्षण खेलों का अभ्यास भी कराया गया । इस एक दिवसीय कार्यक्रम में प्रशिक्षण सहभागिता श्रीमती सीमा इसरानी , श्रीमती ज्योति नायडू, श्रीमती भारती , श्रीमती कुंदा, विरुढ़कर सुश्री प्रियंका मौज़ूद थीं ।
अतिथियों का सम्मान डॉ शिप्रा सुल्लेरे, श्री देवेंद्र यादव, श्री सोमनाथ सोनी द्वारा तिलक लगाकर एवम श्रीफल भेंट कर किया गया । आयोजन के लिए सहायक संचालक बालभवन गिरीश बिल्लोरे द्वारा आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम के आयोजन में श्री टी आर डेहरिया एवम श्री धर्मेंद्र, श्रीमती सीता ठाकुर  का विशेष योगदान उल्लेखनीय रहा ।



शनिवार, 21 जुलाई 2018

विष का प्यासा होता गिरीश


जब जब कुमुदनी  मुस्कुराए तो याद तुम्हें  कर  लेता हूँ
आँखों से बहते धारे से- मन का मैं सिंचन  कर  लेता  हूँ ..

इस भीड़ भाड़ में क्या रक्खा, सब कुछ एकाकी की रातों में -
तब बिना भेद के इस उसके, नातों पे चिंतन कर  लेता  हूँ !!

कहतें हैं सागर मंथन से नवरत्न मिला करता ही करतें हैं...?
विष का प्यासा होता गिरीश , मन का मंथन कर लेता हूँ..!!




सोमवार, 16 जुलाई 2018

पशेमाँ हूँ तुझसे तुझको बचाना चाहता हूँ मैं ।


पशेमाँ हूँ तुझी से, तुझको बचाना चाहता हूँ   ।
बिखर के टूट के तुझको सजाना चाहता हूँ  ।।
ज़िंदगी मुझसे छीनने को बज़िद हैं बहुत से लोग
ऐसी नज़रों से तुझको, छिपाना चाहता हूँ  ।।
बला की खूबसूरत हो, नज़र में सबकी हो जानम
चीखकर लोगों की नजरें हटाना चाहता हूँ  ।।
गिन के मुझको भी मिलीं हैं, औरों की तरह -
वादे साँसों से किये सब निभाना चाहता हूँ ।।
ख़ुशी बेची खरीदी जाए मोहब्बत की तिजारत हो
अमन की बस्तियाँ ज़मी पर  बसाना चाहता हूँ  ।।
कोई मासूम हँस के भर दे  झोली मेरी ख़ज़ानो से
बस ऐसे ही ख़ज़ानों  को  पाना चाहता हूँ ।।
*ज़िन्दगी* मुश्किलों से बना ताबूत है माना  -
मौत के द्वारे तलक मुस्कुराना चाहता हूँ  ।।


गुजरात का गरबा वैश्विक हो गया

  जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर गुजरात   के व्यापारियो...