प्रेम का सन्देश देता ब्लॉग

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शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

हाँ मैं कह न सका कि

उस दिन तय कर लिया था कि आज बताना है कि मैं प्यार में भीगा हूँ ।
सोचने लगा कि कह दूं घर जाकर कि -
सुनो तुमसे प्यार है , तुम इंकार न करना । तुम्हारी चपल चँचल निग़ाहों में प्रेम के पक्के वाले रंग मुझे दिखाई दे रहें हैं ।
घर से कुछ दूर खड़ा होकर घर की तरफ देखा मुड़कर छोटी बहन ने बुलाया - भैया क्या कहीं जा रहे हो ? ये बुक ले आना
ठीक है सपाट ज़वाब देकर निकला और रिक्शेवाले से कहा - यादव कॉलोनी ?
25 रुपया ....!
15 ?
नहीं 20 ?
अरे यार दादा तुम तो बाहरी सवारी समझ लिए ?
तभी दूर से समाली आता दिखा मुझे रिक्शेवाले से बात करते वो तेजी से आ गया और बोला - काय , काहे झंझट कर रहा है कहाँ जाना है साब ?
मैं :- ........ कॉलोनी
समाली :- 10 रुपे ठीक हैं जाएगा ?
रिक्शे वाला आगे बढ़ गया , समाली ने अपना रिक्शा आगे किया मुझे बैठाया और चल दिया ।
25 मिनट बाद हम ...... कॉलोनी चौक पर थे । रास्ते में एक सुंदर सा बुके लिया 15 रुपए का कवि होकर भी इज़हारे इश्क़ के इज़हार की रिवायतों से नावाकिफ .... मुझ नामाकूल को न तो पैग़ाम ए इश्क़ की रिवायत पता थी न रस्म ए मोहब्बत वो भी एक हसीन से जो श्यामली सुंदर नैन नक़्श वाली तुम थी के लिये जाने कितनी प्रेम कविताएं लिखीं थीं याद नहीं सच पता ही न था कि एक गुलाब से इज़हारे इश्क़ हो जाएगा
उस दिन तुम्हारे घर के सामने आकर मैने समाली से कहा - भाई ये वो घर नहीं जहां हमको आना था चलो दीदी के लिए बुक खरीद के वापस चलतें है लगता है मुझे पता गलत याद है ।
             ये वो दौर था इज़हार ए मोहब्बत के साधन और तरीके न के बराबर थे और तो और सुना था कि प्यार का परवाना ले जाने वाले मछरहाई के सारे कबूतर भी अपना हुनर भूल चुके थे । अगर किसी को याद भी हो तो उस कबूतर के मालिक के बारे में किससे पूंछू ?
            कभी सोचा था कि कॉफी हाउस में तुमको बुलाऊँ कह दूं कि तुम मेरे लिए हो पर पुराने वाले मुहल्ले वाले कॉफी हाउस में तुमसे बात करने के तुरंत बाद कोई भी मेरे किसी लड़की के साथ होने की बात के हर्फ़ हर्फ़ वायरल कर देता । सो मन ही मन कार्यक्रम कैंसिल करते हुए वापस सामान्य स्थिती बहाल कर ली ।
             याद हैं न आखिरी पेपर देकर जब हम लौटे थे तब तुमको बड़े बार बार देख रहा था ।
पता नहीं तुमने नोटिस किया था कि नहीं कि कौन तुम्हारी निग़ाहों का बिस्मिल है । सच कहूँ हुस्न की लापरवाही तो सबको पता है इश्क़ की कम अक़्ली के बारे में कम ही लोग जानतें हैं ।उन कम अक्ल वालों में एक हम भी तो थे ।
**********
           असल हुआ ये था कि मुझे ऐन तुम्हारे घर के सामने छोटी बहन की किताब की याद आ गई और दीदी का वो चेहरा भी जिसकी अगले बरस शादी होगी । कांप गया कि तुमको प्रपोज़ करूं और तुम शायद मान भी जाओ पर  ये बात सबको पता लगते ही हंगामा खड़ा होना और  बहन की शाादी में बाधक बनूं तो बाबूजी को मां को कितना दर्द होगा ? उस पर मेरी  वजह से छोटी बहन की सगाई टूटती है तो मैं खुद को माफ़ कैसे करूंगा ?
सच कहूँ बस इसी वजह से में वापस लौट आया । फिर जब मुझे पता लगा कि तुम्हारी शादी होने वाली है तुमको भूलने के लिए हर पल कोशिश की । भूला भी ताकि मेरे प्यार के पवित्र होने पर कोई अंगुली न उठाए ।
फिर दीदी की शादी का कार्ड लेकर जब तुम्हारे घर आया तो पता चला कि तुम्हारी भी सगाई होने वाली है । और फिर तुमको रूमानी एहसासों से हटाने की कवायद में मसरूफ़ हो गया ।
सब कुछ भूल के मैं श्रद्धानत बेहतर कल के लिए जुट गया । सफ़ल भी हुआ .. आज तुमको सोशल मीडिया पर न पहचानना एक संयोग है । सच कहूँ तुम्हारे प्रेम से पगा मैं अब दृढ़ हूँ पर तुम्हारा हूँ ।
ऐसे प्रेम को क्या नाम दूं प्रिये तुम ही कहो
शायद तुम और मैं इस प्रीत को कोई नाम न दे सकेंगे पर यही पावन प्रीत है ।



1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-12-2017) को "सब कुछ अभी ही लिख देगा क्या" (चर्चा अंक-2819) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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