भीगा भीगा परबत

एक पल में जान निकालने वाली विरह की तपन के नज़दीक बैठे बैठे में अचानक हताशा और कसक के बीच हिचकोले लेती नाव सी सिर्फ और सिर्फ बहाव के साथ बहते हुए तुम्हारे पास आने को कसमसाती सी बेसुध हो जातीं हूँ । आज जब उसने बरसों पुरानी बात याद दिलाई तो एक एक कर मैं तब की सारी घटनाओं को सिंक्रोनाइज कर रही हूँ । आज मैंने पूछ ही लिया कि- हाँ मुझे तुमसे शिकायत है . तब क्यों न बोले तुम जो सरिता के उसपार बैठे बैठे 30 साल बाद अपनी भूल को कबूल कर रहे हो ? वो - कैसे करता श्यामली कायर नहीं था पर परिवार कॅरिअर सब देखना था । सोचा था कुछ दिन बाद बहनों के विदा होते ही मैं अभिव्यक्त कर दूंगा । मैं - भला कोई इतना संयत कैसे हो सकता है कि अपनी बात न रखे । वो- अच्छा बताओ श्यामली मेरी ज़गह तुम होतीं तब क्या करतीं ? मैं- वही जो तुमने किया पर में स्त्री थी न डरती थी कि पता नहीं क्या होगा सामाजिक प्रतिबंधों का सबसे बड़ा असर लड़कियों पर ही होता था न तब ! तुम पुरूष हो मुझे कहते तो ! वो - हाँ कह देता , तीस साल पहले कह देना था मुझे कि मैं ....... पर तुम क्या रियेक्ट करतीं ये सोच के न किया फिर घर