रख देता हूँ रहन
अपने चंचल सपन
तुम्हारे चंचल मन के पास
और फिर सोने की कवायद में
करवटें बदलता हूँ
अपने चंचल सपन
तुम्हारे चंचल मन के पास
और फिर सोने की कवायद में
करवटें बदलता हूँ
देर रात तलक
न दिमाग सोता है
न कलम
दिलो दिमाग पर
विषय ऊगते हैं ...
कुछ पूछते हैं
कुछेक जूझते हैं मुझसे
लिखता हूँ
मुक्कमल हो जाता हूँ..
फिर झपकतीं हैं पलकें
तुम वापस भेज देतीं हो
नींद जो रख देता हूँ रोज़ रहन
तुम्हारे पास
फिर होती है
भोर तो मेरी रोजिन्ना
देर से होती है !
तब जब पेप्पोर रद्दी वाला चीखता है
हाँ तभी
जब भोर हो जाती है भोर तो मेरी रोजिन्ना
देर से होती है !
तब जब पेप्पोर रद्दी वाला चीखता है
हाँ तभी