"दुर्बल व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता प्रेमी दुर्बल नहीं हों सकता "

शुक्र और चांद अचानक नहीं इनका मिलाना तयशुदा था। उस दिन जब चंद्रमा और शुक्र का मिलन तय था और मेरे शहर का आकाश अगरचे बादलों भरा न होया तो इस पल को सब निहारते। कईयों ने तो इसे निहारा भी होगा .....उनके आकाश में बादल जो नहीं हैं । प्रेम की परिभाषा भी यहीं कहीं मिलती है ....! "प्रेम"एक ऐसा भाव है जिसको स्वर,रंग ,शब्द , संकेत, यहाँ तक कि पत्थरों ने भी अभिव्यक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ...... खजुराहो से ताजमहल तक उर्वशी से मोनालिसा तक ,जाने कितनी बातें हैं जो प्रेम के इर्दगिर्द घूमतीं हैं ....! "सच प्रेम ही संसार कि नींव है "......आसक्ति प्रेम है ही नहीं ! प्रेम तो अहो ! अमृत है ! प्रेम न तो पीड़ा देता है न ही वो रुलाता। आशा और विश्वास का अमिय है ..प्रेम सोंदर्य का मोहताज कभी नहीं हो सकता ...परंतु जब यह अभिव्यक्त होता है तो जन्म लेतें कुमारसंभव जैसे महाकाव्य !! किसी ने क्या ख़ूब कहा -"जिस्म कि बात नहीं ये " सच !यदि दिल तक जाने कि बात हो तो ....आहिस्ता आहिस्ता जो भाव जन्मता है वोही है प्रेम। अगर आप सच्चा प्रेम देखना चाहतें हैं ..... एक ऐसी मजदूर माँ को देखिए