प्रेम का सन्देश देता ब्लॉग

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रविवार, 26 अक्तूबर 2014

पहले ही तरल हो... मिल जाता हूं.. कुछ इस तरह

अक्सर जब पिघलने लगता हूं..
तो रिसता भी हूं...
रिसते रिसते ... हौले हौले ...
तरल होकर सरकता हूं...
ढलान की तरफ़ .........
जो शनै: शनै: गहराई का आकार लेती है...
उसी ढलान के बाद वाली गहराई में डूबने उतराने लगता हूं.. 
डुबकियां लगाता मैं..
तुम्हारी प्रीत की अतल गहराईयों.. में
थाह नहीं पा रहा हूं.. 
फ़िर तुममें...
तुम जो 
पहले ही तरल हो...
मिल जाता हूं.. 
कुछ इस तरह 
हां.. 
इसी तरह मैं..कि
अपना अस्तित्व भूल 
तुममें खुद को पाता हूं..
यही प्यार है..  

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

कैसे कहूँ किस्मत,शबाब को क्यों ले आई : डॉ श्रीमती तारा सिंह

कैसे कहूँ किस्मत,शबाब1 को क्यों ले आई
आसमां से उतारकर बागे जहाँ की सैर पर

मेरे  होते खाक-पे नक्शे -पा2 क्यों हो तेरा
मैं कब से बैठा हूँ, पलकें बिछाये जमीं पर

रुतबे में,मैं मेहर-ओ-माह3 से कम नहीं,फ़िर
क्यों रखती तू अपनी आँखें हमसे दरेगकर4

बार-बार अपने वादे का जिक्र करना छोड़ दे
कभी  मेरे  कसमों  पर  भी तू एतवार कर

तेरे  जलवे के आलम का क्या कहूँ,आते ही
ख्याल उसका,मेरे कलेजे रह जाते हैं टूटकर



1. जवानी 2. माटी पे कदम का निशां
3. चाँद-सूरज 4. गुस्साकर


बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

रवा-रवा रेखाओं के लिए बिंदु - बिंदु मिलाती तुम

हां !! मुझे याद हैं
वो दिन
जब तुम
अंगूठे और तर्जनी के बी़च
रवीली रंगोली कस के उठातीं थीं
फ़िर रवा-रवा रेखाओं के लिए
बिंदु - बिंदु मिलाती तुम 

ओटले वाला  आंगन सजाती तुम  !!
तब मैं भी
एक "पहुना-दीप"
तुम्हारे आंगन में
रखने के बहाने
आता  ..

एक मदालस सुगंध का 
एहसास पाता  
याद है न तुमको 
तुम मुझे देखतीं  
कुछ पल अपलक 
फ़िर अचकचाकर तुम पूछती-"हो गई पूजा !"
और मैं कह देता नहीं-"करने आया हूं दीप-शिखा की अर्चना.."
अधरों पर उतर आती थी
मदालस मुस्कान
ताज़ा हो जातीं हैं वो यादें अब
जब जब रंगोलियां ओटले वाले  आंगन सजातीं हैं.. 


गुजरात का गरबा वैश्विक हो गया

  जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर गुजरात   के व्यापारियो...