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बुधवार, 18 जून 2014

गोपियों का विरह .... प्रेम का निर्विवाद मानक है मदालसा...!!

अहसासों की भाषा
तो जानता ही है .
अन-तुले अन-नपे
एहसासों में उलझ
आभासी प्रेम को
व्योम में ही नेस्तनाबूत कैसे करोगी ?
जानती हो न
गोपियों का विरह ....
प्रेम का निर्विवाद मानक है
मदालसा...!!
तुम्हारे सवाल
पावन प्रीत की रामायण नहीं
बस तर्क बुद्धि से विन्यासित दस्तावेज़ है
तुम
जिसे मैं खोना नहीं चाहता..
मैं जिसे तुम खोना नहीं चाहती
फ़िर सवालों की शूली पर इस
शास्वत प्रीत को क्यों रखती हो
मुझे
तुम से
कुछ नहीं कहना सिवा इसके कि मेरा प्रेम
एक दिव्य आभास है..
तुम्हारे लिये
मेरे लिये भी .. सच


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