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सोमवार, 12 नवंबर 2012

वो पाक़ीज़ा-क़िताब है.घर आते ही पढ़ा करो .! !



चेहरों वाली क़िताब है हौले-हौले पढ़ा करो
हर चेहरे पे नक़ाब है  हौले-हौले पढ़ा करो .!
खोज रहे हो बेपरवा आभासी  आंचल में सुख
वो पाक़ीज़ा-क़िताब है.घर आते ही पढ़ा करो .! !
जो आंखों में लिये समंदर घूम रहे हो गली गली
मुफ़लिस की उन आंखो से दुनियां अपनी गढ़ा करो..!!
पैदाइश से मरने तक क्या खोया क्या पाया है
ऊपर वाला मुनीम है.. तुम तो आगे बढ़ा करो !!
इश्क़-मोहब्बत-बेचैनी, बेवज़ह की बातें सब
बिरहा की सूली पे हंसते-हंसते चढ़ा करो.!!



1 टिप्पणी:

  1. सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    दीवाली का पर्व है, सबको बाँटों प्यार।
    आतिशबाजी का नहीं, ये पावन त्यौहार।।
    लक्ष्मी और गणेश के, साथ शारदा होय।
    उनका दुनिया में कभी, बाल न बाँका होय।
    --
    आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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