ख़त्म न होगा तेरा गाना रे पपीहे जायेंगे युग बीत' : प्रकृति राय

ओरे पपीहे ! यही है जग की रीत, कौन किसी का मीत ? किस की ख़ातिर तू गाता है, ये मन मोहक गीत ! इस जंगल में कौन सुनेगा पपीहे तेरा ये संगीत ? सुब्ह सवेरे छेड़ न देना कोई विरह का गीत ! किस को बुलाता है तू निस दिन कौन है तेरा मीत' ? पी को पुकारे, पी को ढूंडे तेरा इक इक गीत सब को गाना है दुनिया में अपना अपना गीत, कितनी सदियों से जारी है, तेरा ये संगीत ! मिल जायेगा इक दिन तुझ को तेरा बिछड़ा मीत, ख़त्म न होगा तेरा गाना रे पपीहे जायेंगे युग बीत' गाता जा तू सांझ सवेरे , होगी तेरी जीत ! प्रकृति राय की अनुमति के साथ प्रकाशित