प्रेम का सन्देश देता ब्लॉग

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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

शरद-पूनम की अंजोरी में मैं तुमको पाता हूं..



शरद-पूनम  की अंजोरी  में मैं तुमको पाता हूं..
बहुत हो खूबसूरत तुम ये सबको बताता हूं..!
कोई जो पूछता है किसकी बातें कर रहे हो तुम –
यूं ही आकाश की ज़ानिब सर उठाता हूं..
बिना कुछ बोले मृदुल मुस्कान यूं आ ही जाती है
बिना कुछ बोले उनको सब कुछ बताता हूं.
कि है वो कौन किसके वास्ते ज़िंदा ये दीवाना
कभी मैं गुनगुनाता हूं कभी लिखता हूं अफ़साना.
यक़ीनन मैं ही हूं  आशिक़ तुम्हारी हर अदाओं का
मुंतज़िर हूं मेरे मेहबूब तुम्हारी ही सदाओं का.
तुम्ही कह दो मिलेंगे कब कहां कैसे ओ अंजोरी..
मुंतज़िर हूं.. तुम्हारी प्यार बरसाती निगाहों का.
  


रविवार, 28 अक्तूबर 2012

जहां तुमने मुझे गर्म सांसों का से मिलाया था.

तुम तो तस्वीर की सी हो
जो लटकी है मेरे दिल की दीवारों पे
मैं अक्सर 
तन्हा होता हूं 
उसी से बात करता हूं..
तुम्ही को याद करता हूं..!!
वो लम्हे जो तुमने मुझको सौंपे थे 
अपने आप आगे आ 
उन्ही लम्हों में लिपटा था तुम्हारे रूप का ज़ादू
जिसे मैं प्यार का आकार देता हूं
दिल की दीवार वाली तुम्हारी तस्वीर को अक्सर 
बीसीयों बार उन तन्हा पलों मे 
निहार लेता हूं..
ख़ुदा जाने तुम क्या सोचती होगी 
कहां होगी..?
जहां हो यक़ीनन तुम कभी तो सोचती होगी 
 मिला था
एक दीवाना
ठिठुरता जाड़े में
 इक बेबस किनारे पर 
जहां तुमने मुझे 
गर्म सांसों का
से मिलाया था..!
 न जाने किस जगह कैसा कहां 
होगा वो दीवाना 
सुनाना मत किसी को 
सुलगते पलों के किस्से 
हमारी प्रीत की पाक़ीज़गी को
कौन जानेगा..




सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

तुम्हारा आना खबर सुहानी तुम्हारी तरह हुईं खबर अब !


तुम्हारा आना खबर सुहानी तुम्हारी तरह  हुईं खबर अब !
बहुत दिनों से मैं मुतज़िर हूं,  कि रेज़ा रेज़ा हुई *सबर अब !!

चले जो इक पल सवाल संग थे, कहां थे तन्हा तुम्ही कहो न-
थे तुम अबोले हमारी चुप्पी उसी कसक का हुआ असर अब !!

ये दिल की लहरें समंदरों के उफ़ान से हैं सदा बराबर -
झुकी निगाहों का काम  अब ये गिना करें हैं वो हरेक लहर अब !!

विरह के सागर से जाके मिलतीं, हज़ारों सरिता मिलन की अक्सर
हुईं हैं शामिल तड़पती शामें.. औ’ ज़िंदगी में तन्हां सहर अब !!

(*सबर = सब्र के लिये बोलचाल में उपयोग में लाया जाने वाला शब्द )

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

हवा का झोंका है या तुम्हारे बदन की खुसबू ! ये पत्तियों की है सरसराहट के तुमने चुपके से कुछ कहा है !

साभार : http://daraya95.deviantart.com/art/Rekha-185921387
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं !
के तुम होती तो कैसा होता, तुम ये कहती, तुम वो कहती
तुम इस बात पे हैरां होती, तुम उस बात पे कितनी हंसती !
तुम होती तो ऐसा होता, तुम होती तो वैसा होता !
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं!

ये रात है, या तुम्हारी जुल्फें खुली हुई हैं !
है चांदनी या तुम्हारी नजरों से मेरी रातें धूलि हुई हैं !
ये चाँद है या तुम्हारा कंगन
सितारें है या तुम्हारा आँचल
हवा का झोंका है या तुम्हारे बदन की खुसबू !
ये पत्तियों की है सरसराहट के तुमने चुपके से कुछ कहा है !
ये सोचता हूँ मैं कब से गुमसुम
के जब की मुझको भी यह खबर है
के तुम नहीं हो, कहीं नहीं हो !
मगर ये दिल है के कह रहा है
के तुम यहीं हो , यहीं कहीं हो !

गुजरात का गरबा वैश्विक हो गया

  जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर गुजरात   के व्यापारियो...