भ्रूण तक पहचानने मुझको न आना- ये परीक्षा और अब मैं न सहूंगी..!!
तुम्हारी हर वेदना को कम करूंगी हां, तुम्हारे हौसलों में दम भरूंगी उफ़ ! परीक्षा जन्म से मेरी ही क्यों ? मैं हूं दुर्गा भय तुम्हारे मैं हरूंगी . आख़री सांसों तलक झांसी न दी बनके मीरा विष पिया फ़िर भी मैं जी. बनी सीता अग्नि से मिल आई मैं तुमने जितनी चाही परीक्षा मैने दी . भ्रूण तक पहचानने मुझको न आना- ये परीक्षा और अब मैं न सहूंगी..!! तुम्हारी हर वेदना को कम करूंगी