डरतीं हूं ये सतफ़ेरा जोड कहीं.. आभासी न रह जाए..?
एक प्रेयसी सी नित मैं बांट जोहती अपलक !! अधगूंथे आटे भरे हाथ से उठातीं हूं .. फ़ोन एस एम एस पढ़ने को !! वो जो तुम्हारा नही होता !! अनचाहे व्यावसायिक सदेशों की तरह तुम्हारे संदेशों को पढ़ पढ़ उकता गई हूं तुम एक न एक विवषता के सहारे मुझे भरोसा देने में कामयाब हो जाते हो.. डरतीं हूं ये सतफ़ेरा जोड कहीं.. आभासी न रह जाए..?