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शनिवार, 26 मार्च 2011

गोरे गाल पर काले तिल वाली लड़की


  

  

·        गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”
   गाल पे काला तिल था उसके। याद है सफ़ेद झक्क गोया मैदे से बनाई गयी हो . आशिकी के लिए इत्ता काफ़ी था मुहल्ले के लड़कों के लिए दिन भर घर में बैठी उस सुकन्या को मोहल्ले में आए पन्द्रह-बीस दिन ही हुए थे की सारे मुहल्ले के लोग खासकर ख़बर खोजी औरतें, ताज़ा ताज़ा मुछल्ले हुए वे लडके जो फ़र्स्ट/सेकण्ड ईयर के आगे बस न पढ़ सके न पड़ना ही चाहते थे.क्योंकि माँ-बाप की सामर्थ्य नहीं का लेबल लगा कर स्कूल न जाना ही उनका अन्तिम लक्ष्य था...... ताकि उनकी आन बान बची रहे , सुबह सकारे उठाना उनके मासिक कार्यक्रम में था यानी महीने में एकाध बार ही अल्ल-सुबह जागते थे.वरना साढ़े नौ  से पहले उनके पिता जी भी जगा न सकते थे. यानी कुलमिला कर घर का बोझ  में  पिता पर. कुछेक के मां-बाप जानते थे कि "गली से निकलने वाली हरेक लड़की की ज़िम्मेदारी उनके नामुराद बेटों पर है "
साभार:यहां से 
                           क्या मजाल की मुहल्ले की कोई लड़की इनके नामकरण यानी फब्तियों से बच जाए .अगर भूरी राजू से बची  तो कंजा राजू की फब्तियों का शिकार हो ही जातीं थी बेचारी . कंजा,भूरी,कंटर, तीन राजुओं के अलावा बिल्लू.मोंटी,गोखी,कल्लन,सुरेन,ये सारे के सारे कैरेक्टर मुहल्ले की फ़िज़ा में समकालीन पसंदीदा हीरोज़ की स्टाइल में निवास रत  करते थे एक तो साला मिथुन का क्लोन था कोई शशि कपूर तो कोई अमिताभ. जी हां जबलईपुर के एक  मोहल्ले में जहाँ कभी हम भी रहा रहे थे. ,
ससुरे दिन भर आवारा गर्दी करते पर थकते नहीं थे रात बारह के पहले लौटते न थे. चाची ने एक रात कंजा राजू से पूछा :- कहां गया था ?
राजु:- मालवी चौक..?
चाची:-"काय गया था "
राजू:-"परसों पेपर है न ?"
चाची:-"तो घर में पढ़ता क्या उधर क्लास लगी थी कलमुंहे इत्ती रात को "
राजू:-"अम्मा, तू का जाने, आज़ **गैसिंग लेट हो गई "
चाची:-"ससुरा, रोज झूठ बोलता है, मालवीय चौक पे तो ऐसे जाता है जैसे कोई मालवीय जी की मूर्ती को कोई ले जाएगा चुरा के.  कलेक्टर ने अपने राजू को जिम्मेदारी दी हो "
                                  हाँ तो मूल किस्से पर आता हूं  वे लोग सुंदर लड़की को निहारने कितने जतन करते थे . किंतु वो सफ़ेद झक गाल पर तिल वाली लड़की उनको देखने कम ही मिलती और जब जिसने भी उस लावण्या का दर्शन कर लिया तो समझिये कि वो हीरो साबित हुआ. दिन भर अन्य सारे लडके उसे घेर के विवरण पूछते.
काय...? आज तो .....
हओ... आज तलक हम नईं देखी ऐसी लड़की ! बड्डा गज़ब है... रेखा को बिठा दो बाजू में तो रेखा फीकी पड़ जा है...!
अरे घर से बाहर काय नई आती...?
" जे लो, करलो बात  अरे,सुन्दरता पे डाका न डाल दें !
   दूसरा सभ्य शोहदा:- अरे तुम तो ? यार लड़की का तुमाए साथ कंचा खेलेगी कि पतंग उड़ाएगी बेबकूफ हो तुम इत्ती सी बात नईं समझते "
तभी कंटर बड़े स्टाइल से बोला :"सुनो रे अदब से बात करो तुमाई सबकी भाभी है साले अब कोई बोला तो...?"
तो क्या .......... बताएं का ? कित्ती लड़कियों को हमाई भाभी बनाएगा साले....पटती एको नई बात तो सुनो शेख चिल्ली की औलाद की . जा साले  ऐना  देख घर जाके.
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रहस्यमयी उस सुकन्या को कितने लडके अपनी प्रेयसी मान बैठे थे .कोई गुरूवार उपासा रहने लगा था तो किसी ने ग्वारीघाट वाले हनुमान-मन्दिर में अर्जी तक दाखिल कर दी थी .कुल मिला कर अभीष्ट की सिद्धी के लिए इष्ट को सिद्ध कराने का ज्ञान सबके अंतर्मन में उपजाने लगा. उस लड़की के मुहल्ले में आते ही अन्य लड़कियों पर फब्तियां भी यदा कदा ही कसी जातीं थी. . सबका अन्तिम लक्ष्य " गोरे गाल पर काले तिल वाली लड़की को इम्प्रेस करना था "अब दीपा,माया,मीरा,मौसमी सब महत्त्व हीन हो गयीं थी
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                                                होते करते आठ माह बीत गए एक दिन अचानक वो लड़की कहाँ गयी किसी को पता न चल सका . सारे आवारा लडके इस सवाल को लेकर बेचैन अधीर हो रहे थे . कंजा से रहा नहीं गया उस सुकन्या के घर पहुंच उसकी माँ से पूछ ता है : "अम्मा जी, आप अकेलीं है बाबूजी .... इससे पहले कि कंजा बेटी के बारे में पूछता कि अम्मा जी की तनी भृकुटी देख अपना सा मुंह लिए गली पकड़ ली .
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                         दो साल बाद होली की हुडदंग में मोहल्ले के दस बारह लडके पुलिस के हत्थे चढ़ गए किसी के माँ बाप जमानत को आए तब सिपाही सबको हथकड़ी लगा के कलेक्ट्रेट के कमरा नम्बर 56 में पेश करने ले आया . रीडर ने जमानत पेपर की दरयाफ्त की . सबके चेहरों से हवाइयां उड़ रहीं थी कि सब डिविज़नल मजिस्ट्रेट की सुरीली आवाज़ ने उनको चौंका दिया "बाबू साब, इनकी जमानत मैं लेती हूँ "
     साहिबा का कथन सुन युवक सन्न रह गए . एस डी एम मैडम की कृपा की उनको उम्मीद इस कारण भी न थी क्योंकि वही सुकन्या थी जिसके लिए कई जतन करते थे ये लडके .
रिहा होने पर भी लड़के कमरे के सामने सर झुकाए खड़े थे .... मैडम जब निकलीं तो उनको भी ताज्जुब हुआ . एक क्षण रुक कर बोली : "अपना मार्ग तपस्या से बनता है ......! उस वक़्त मैं इसी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. तब जब तुम लोग हम लड़कियों को सताते थे. बहरहाल अभी भी  . तुम्हारी राहें अभी बंद नहीं हुईं हैं अभी भी रास्ते खुलें हैं ....!" 

**गैसिंग= दस सवालों वाला प्रश्न पत्र जैसा काग़ज़, जो उन दिनों मालवीय-चौक,सदर,डिलाईट,करम चंद चौक काफ़ी हाउस के पास छात्र नेता अपने लग्गू-भग्गू स्टुडेंट्स को देते थे. ताकि वे पास हो जाएं.

8 टिप्‍पणियां:

  1. दादा तिल की जगह मस्सा नजर आ रहा है।
    लेकिन कहानी में दम है,तपस्या से मार्ग मिलता है।
    इसलिए हम जा रहे हैं घोड़ाडोंगरी।
    बिजली भी मिलेगी और तपस्या भी हो जाएगी।
    चोट्टे लोगों को करेंट का झटका भी लगेगा।
    राम राम

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  2. अच्छा लगा -
    ये तेरे फूल से गालों पे जो काला तिल है ।
    तुमको मालूम नहीं है कि ये मेरा दिल है ॥

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  3. जी फ़ोटो शापी नही पैंट-ब्रश वाला

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  4. काला तिल ही नही है रचना कार का दिया बोनस है एक झलक रोज मर्रा के युवा क्रिया कलापो की

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  5. जी बेनामी साब
    आगे भी कहना चाह रहे थे न

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  6. तेरे दिल के लिये बेचैन मेरा दिल नहीं होता
    तसव्वुर में तेरा आना कभी शामिल नहीं होता
    भले पहले से जख्मीं हूं मगर दीवाना ना होता—
    अगर रूखसार तेरे वो पर तिल नहीं होता।
    डा0 सुदेश यादव जख्मी
    www.ehshash.blogspot.in

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