प्रेम का सन्देश देता ब्लॉग

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गुरुवार, 31 मार्च 2011

पहली बार जुदाई सहना ज़हरीले सांपों संग रहना



न मिलते तो प्रीत न होती
प्रीत न होती  जीत न होती
बाद जीत के ओझल होना
पोर-पोर का घायल होना
पाया है तो खोने का भय
सुबक-सुबक  रो लेने का भय
प्रीत के तागों ने मन बांधा
तुमने प्रिय मुझको यूं साधा..
जानूं न ….धीरज न  संयम
मन भावन अब ….तुम्हरा बंधन
प्रीत में पहली बार जुदाई
मेरी सांसों पे बन आई....!
धूप तपन जाड़ा अरु बारिश
 है सहना ये सब मुमकिन सा.
पर प्रियतम अब तुम क्या जानो 
युग सा बीता विरह का दिन था
पहली बार जुदाई सहना 
ज़हरीले सांपों संग रहना .
आशंकित मन,भय-मिश्रित तन
तुम बिन डसता तन को गहना

बुधवार, 30 मार्च 2011

न जागो और न मेरा इंतज़ार करो

न जागो और न मेरा  इंतज़ार करो-
तुम भी औरों की की तरह मुझको को बेज़ार करो...
............................न जागो और न मेरा  इंतज़ार करो !

कौन हूं मैं   किधर से आया हूं
बहुत रोया हूं वहां..! मैं जिधर से आया हूं
एक सेहरा हूं , उसको न गुलज़ार करो !!
............................न जागो और न मेरा  इंतज़ार करो !

मुझको इस दर्द से राहत ही मिला करती है
सुकूं मिले तो वो  रात भी,  गिला करतीं है !!
खुद को बेवजह जला के न उजियार भरो !!
............................न जागो और न मेरा  इंतज़ार करो !



सोमवार, 28 मार्च 2011

चिंतन की सिगड़ी पे प्रीत का भगौना

साभार:प्रतिबिम्ब ब्लाग 
चिंतन की सिगड़ी पे प्रीत का भगौना
रख के फ़िर  भूल गई, लेटी जा बिछौना
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पल में घट भर जाते, 
नयन नीर की गति से
हारतीं हैं किरनें अब -
आकुल मन की गति से.
चुनरी को चाबता, मन बनके  मृग-छौना ?
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बिसर  गई जाते पल,
डिबिया भर  काज़ल था
सौतन के डर से मन -
आज़ मोरा व्याकुल सा
माथे प्रियतम के न तिल न डिठौना ? 
************
 पीर हिय की- हरियाई
तपती इस धूप में
असुंअन जल सींचूं मैं
बिरहन के रूप में..!
बंद नयन देखूं,प्रिय मुख सलौना !!

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शनिवार, 26 मार्च 2011

गोरे गाल पर काले तिल वाली लड़की


  

  

·        गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”
   गाल पे काला तिल था उसके। याद है सफ़ेद झक्क गोया मैदे से बनाई गयी हो . आशिकी के लिए इत्ता काफ़ी था मुहल्ले के लड़कों के लिए दिन भर घर में बैठी उस सुकन्या को मोहल्ले में आए पन्द्रह-बीस दिन ही हुए थे की सारे मुहल्ले के लोग खासकर ख़बर खोजी औरतें, ताज़ा ताज़ा मुछल्ले हुए वे लडके जो फ़र्स्ट/सेकण्ड ईयर के आगे बस न पढ़ सके न पड़ना ही चाहते थे.क्योंकि माँ-बाप की सामर्थ्य नहीं का लेबल लगा कर स्कूल न जाना ही उनका अन्तिम लक्ष्य था...... ताकि उनकी आन बान बची रहे , सुबह सकारे उठाना उनके मासिक कार्यक्रम में था यानी महीने में एकाध बार ही अल्ल-सुबह जागते थे.वरना साढ़े नौ  से पहले उनके पिता जी भी जगा न सकते थे. यानी कुलमिला कर घर का बोझ  में  पिता पर. कुछेक के मां-बाप जानते थे कि "गली से निकलने वाली हरेक लड़की की ज़िम्मेदारी उनके नामुराद बेटों पर है "
साभार:यहां से 
                           क्या मजाल की मुहल्ले की कोई लड़की इनके नामकरण यानी फब्तियों से बच जाए .अगर भूरी राजू से बची  तो कंजा राजू की फब्तियों का शिकार हो ही जातीं थी बेचारी . कंजा,भूरी,कंटर, तीन राजुओं के अलावा बिल्लू.मोंटी,गोखी,कल्लन,सुरेन,ये सारे के सारे कैरेक्टर मुहल्ले की फ़िज़ा में समकालीन पसंदीदा हीरोज़ की स्टाइल में निवास रत  करते थे एक तो साला मिथुन का क्लोन था कोई शशि कपूर तो कोई अमिताभ. जी हां जबलईपुर के एक  मोहल्ले में जहाँ कभी हम भी रहा रहे थे. ,
ससुरे दिन भर आवारा गर्दी करते पर थकते नहीं थे रात बारह के पहले लौटते न थे. चाची ने एक रात कंजा राजू से पूछा :- कहां गया था ?
राजु:- मालवी चौक..?
चाची:-"काय गया था "
राजू:-"परसों पेपर है न ?"
चाची:-"तो घर में पढ़ता क्या उधर क्लास लगी थी कलमुंहे इत्ती रात को "
राजू:-"अम्मा, तू का जाने, आज़ **गैसिंग लेट हो गई "
चाची:-"ससुरा, रोज झूठ बोलता है, मालवीय चौक पे तो ऐसे जाता है जैसे कोई मालवीय जी की मूर्ती को कोई ले जाएगा चुरा के.  कलेक्टर ने अपने राजू को जिम्मेदारी दी हो "
                                  हाँ तो मूल किस्से पर आता हूं  वे लोग सुंदर लड़की को निहारने कितने जतन करते थे . किंतु वो सफ़ेद झक गाल पर तिल वाली लड़की उनको देखने कम ही मिलती और जब जिसने भी उस लावण्या का दर्शन कर लिया तो समझिये कि वो हीरो साबित हुआ. दिन भर अन्य सारे लडके उसे घेर के विवरण पूछते.
काय...? आज तो .....
हओ... आज तलक हम नईं देखी ऐसी लड़की ! बड्डा गज़ब है... रेखा को बिठा दो बाजू में तो रेखा फीकी पड़ जा है...!
अरे घर से बाहर काय नई आती...?
" जे लो, करलो बात  अरे,सुन्दरता पे डाका न डाल दें !
   दूसरा सभ्य शोहदा:- अरे तुम तो ? यार लड़की का तुमाए साथ कंचा खेलेगी कि पतंग उड़ाएगी बेबकूफ हो तुम इत्ती सी बात नईं समझते "
तभी कंटर बड़े स्टाइल से बोला :"सुनो रे अदब से बात करो तुमाई सबकी भाभी है साले अब कोई बोला तो...?"
तो क्या .......... बताएं का ? कित्ती लड़कियों को हमाई भाभी बनाएगा साले....पटती एको नई बात तो सुनो शेख चिल्ली की औलाद की . जा साले  ऐना  देख घर जाके.
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रहस्यमयी उस सुकन्या को कितने लडके अपनी प्रेयसी मान बैठे थे .कोई गुरूवार उपासा रहने लगा था तो किसी ने ग्वारीघाट वाले हनुमान-मन्दिर में अर्जी तक दाखिल कर दी थी .कुल मिला कर अभीष्ट की सिद्धी के लिए इष्ट को सिद्ध कराने का ज्ञान सबके अंतर्मन में उपजाने लगा. उस लड़की के मुहल्ले में आते ही अन्य लड़कियों पर फब्तियां भी यदा कदा ही कसी जातीं थी. . सबका अन्तिम लक्ष्य " गोरे गाल पर काले तिल वाली लड़की को इम्प्रेस करना था "अब दीपा,माया,मीरा,मौसमी सब महत्त्व हीन हो गयीं थी
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                                                होते करते आठ माह बीत गए एक दिन अचानक वो लड़की कहाँ गयी किसी को पता न चल सका . सारे आवारा लडके इस सवाल को लेकर बेचैन अधीर हो रहे थे . कंजा से रहा नहीं गया उस सुकन्या के घर पहुंच उसकी माँ से पूछ ता है : "अम्मा जी, आप अकेलीं है बाबूजी .... इससे पहले कि कंजा बेटी के बारे में पूछता कि अम्मा जी की तनी भृकुटी देख अपना सा मुंह लिए गली पकड़ ली .
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                         दो साल बाद होली की हुडदंग में मोहल्ले के दस बारह लडके पुलिस के हत्थे चढ़ गए किसी के माँ बाप जमानत को आए तब सिपाही सबको हथकड़ी लगा के कलेक्ट्रेट के कमरा नम्बर 56 में पेश करने ले आया . रीडर ने जमानत पेपर की दरयाफ्त की . सबके चेहरों से हवाइयां उड़ रहीं थी कि सब डिविज़नल मजिस्ट्रेट की सुरीली आवाज़ ने उनको चौंका दिया "बाबू साब, इनकी जमानत मैं लेती हूँ "
     साहिबा का कथन सुन युवक सन्न रह गए . एस डी एम मैडम की कृपा की उनको उम्मीद इस कारण भी न थी क्योंकि वही सुकन्या थी जिसके लिए कई जतन करते थे ये लडके .
रिहा होने पर भी लड़के कमरे के सामने सर झुकाए खड़े थे .... मैडम जब निकलीं तो उनको भी ताज्जुब हुआ . एक क्षण रुक कर बोली : "अपना मार्ग तपस्या से बनता है ......! उस वक़्त मैं इसी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. तब जब तुम लोग हम लड़कियों को सताते थे. बहरहाल अभी भी  . तुम्हारी राहें अभी बंद नहीं हुईं हैं अभी भी रास्ते खुलें हैं ....!" 

**गैसिंग= दस सवालों वाला प्रश्न पत्र जैसा काग़ज़, जो उन दिनों मालवीय-चौक,सदर,डिलाईट,करम चंद चौक काफ़ी हाउस के पास छात्र नेता अपने लग्गू-भग्गू स्टुडेंट्स को देते थे. ताकि वे पास हो जाएं.

सोमवार, 21 मार्च 2011

आभासी अनुभूतियां

    वो एक करिश्मा है. जो दिन रात एक बस मेरे खयालों में शामिल है. उसे देखते ही प्यार के बादलों में सावन की तरह जम जाने और फ़िर रिस रिस के उसे भिगोने को जी चाहता है. यूं तो मुझे नेट पर कई मिले हैं जो खुद ब खुद मेरे करीब आते. फ़िर थोड़ा बहुत मिल मिला कर मेरे ब्लाग की झूठी-सच्ची तारीफ़ फ़िर मिलने का बहाना न चूकते पर वो ऐसा जिसे न मै भूल पाई न ही भूलना चाहती हूं. सवाल यह भी कि वो जो मेरी सासों में शनै:शनै: घुलता जा रहा  सच है या एक आभासी व्यक्तित्व . सोचते मेरी कब आंखें लग गईं मालूम नहीं डेस्क-टाप पर स्क्रीन-सेवर की मछलियां जाने कब धींगा मस्ती करने लगीं मैं बेखबर सी उसनींदी रिवाल्विंग-कुर्सी पर निढाल थी.  मन की बेचैनी ने सांसों को भड़का दिया और सांसों ने धड़कनों को को रफ़्तार दी. मुझे प्यार की अनुभूती हो गई बार बार जाने क्यों लग रहा है यही तो सच है.
      मेरे साथ किसी  का होना न होना बराबर है ये अलग बात है कि मुझे पहला प्यार इनसे ही हुआ था. है भी रहेगा भी मेरी तरफ़ से पर ये क्या मुझे जिसकी तलाश थी वो नहीं है उसमें मुझे आज़ मिल गया आभासी दुनिया में वो जिसकी तलाश थी . क्या करूं तलाशना सही था या ग़लत मैं क्या जानूं.   सोचतीं हूं खुद-ब-खुद उससे अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कर दूं पर .....
पर क्या ?
"कुछ नहीं डरतीं हूं "
क्यों डरती हो मेरा मन मुझसे ही पूछता है
जानते हैं  मेरे सामने दो सवाल खड़े हैं एक -क्या, मेरी आसक्ति है या सच्चा प्रेम  है दूसरा:-"क्या बिना उसको जाने मैने प्यार किया वो कितना नैतिक है ."
                आसक्ति की नैतिकता या सच्चे प्रेम का रेखा चित्र क्या है जो मैं देख रही हूं. बस इन्हीं सवालों की भूलभुलैंया में गोते लगा रहीं हूं.
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जी टाक पर उनसे बात करने की गरज़ से काल किया. आज़ तो एक ही क्लिक में उधर से आवाज़ आई "जी बताएं"
बस कुछ नहीं यूं ही..! आप बिजी हैं क्या..?
"हां ज़रा सा कुछ काम निपटा रहा था.."
ठीक है हो जाए तब मुझे बताइये
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इस के बाद एक लम्बा सा विराम  देर तक उनका इंतज़ार करती रही पर वे न आये, आते भी कैसे कोई काहे किसी को बेवज़ह कष्ट देता है यहां. आभासी दुनियां में सत्य की खोज जब खुद सच्ची दुनियां में सत्य नहीं है तो मै क्यों भूसे में सुई खोज रही हूं
चैट विंडो पर उसने लिखा ’जी बताएं ?’..... अब  गोया वो फ़ुरसत हो गया था अब तभी तो उसने ये सवाल किया मुझसे . मन में आया कि कह दूं कि -"बिज़ी हूं पर जाने क्या तिलिस्म था उसमें बेडोर खिंचती चली गई मैं उसकी एक झलक के लिये :-जी बस यूं ही मुझे कविता पर कुछ सजेशंस दीजिये मेल की है कविता आपको....! "
"ओ के देखता हूं "
कुछ देर बाद फ़िर एक कविता जो पूरी तरह बदल चुकी थी मुझे चैट-विंडो पर वापस मिली
अरे आपने तो बदल ही दी
जी , गीत हो या कविता लय ज़रूरी है, छंद हीन कविता में भी तो लय होती है..
जी, पर भाव तो नहीं बदलने चाहिये ... मैने कहा
जी, ध्यान से देखिये फ़िर बात कीजिये ,
गौर से देखा तो कविता के भाव यथावत थे सच वो एक ऐसा इंसान लगा मुझे जो गोया उस पल जब मैं कविता लिख रही थी मेरे मानस में हो .अब समझी कि क्यों आकर्षित करता है वो.
हौले-हौले मेरा नाता गहराता रहा मैं समर्पित सी उसकी अधीरता से प्रतीक्षा करती एक दिन उससे अपने प्रेम का इज़हार कर ही दिया मैने कांपते हाथों से ..."आई........."
और फ़िर उसकी चैट-विंडो अचानक गुम हो गई . मेरा आई०डी० उसने ब्लाक कर दिया . अब उसको मै मेल कैसे करती यह बताने कि मेरा इज़हार ग़लत नहीं बस एक मित्र के लिये था. एक सुलगता सवाल मेरे मानस में छोड़ गया वो वो जो एक नेक इंसान है वरना और कोई होता तो मेरे इज़हार के  जाने क्या क्या...

रविवार, 20 मार्च 2011

फ़ागुन के गुन प्रेमी जाने, बेसुध तन अरु मन बौराना

फ़ागुन के गुन प्रेमी जाने, बेसुध तन अरु मन बौराना


या जोगी फ़ागुन पहचाने , हर गोपी संग दिखते कान्हा

रात गये नज़दीक जुनहैया,दूर प्रिया इत मन अकुलाना

सोचे जोगीरा शशिधर आए ,भक्ति की भांग पिये मस्ताना

प्रेम रसीला भक्ति अमिय संग,लख टेसू न फ़ूला समाना

डाल झुकीं तरुणी के तन सी, आम का बाग गया बौराना 

जीवन के दो पंथ निराले,कृष्ण की भक्ति या प्रेम को पाना 

दौनों ही मस्ती के पथ हैं,इनपे ही हो आना जाना--..!!



गुरुवार, 3 मार्च 2011

तुम और तुम्हारी आहटें,

तुम और तुम्हारी आहटें,
मन के सारे दरवाजे खोल देती है
और
जी उठती हूँ
मैं एक बार फिर ,
खिलखिलाकर मुस्कुरा देता है जीवन
तुम्हारी आहटों को करीब पाकर .
मीलों के फासलों से भी तुम्हारी खुशबू
मुझको विचलित कर देती है
अच्छा ,बुरा साथ और दूरी
इन सब से दूर आ चुकी हूँ मैं ,
तुम्हारे साथ चलते चलते
(पूरी कविता यहां पढिये )"अनुभूति"

गुजरात का गरबा वैश्विक हो गया

  जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर गुजरात   के व्यापारियो...