प्रेम दिवस पर स्वामी शुद्धानंद नाथ के जीवन सूत्र प्रस्तुत करना चाहता हूं . जो दिव्य-प्रेम को परिभाषित करतें हैं ये सूत्र स्वामीजी ने "शारदेय-नवरात्र -वर्ष 1960" को के दौरान अपने शिष्यों कों साधना के साथ 1960 में दिनांक 21,22, एवम 23/09/1960 प्रदान किये थे. 21/09/1960 सूत्र::01 "प्रेम " ही संसार की नींव है. वह प्रेम आसक्तिमय हो या साहजिक होवे, प्रेम व्यवहार में सुख और शांति उत्पन्न करता है ,त्याग सेवा और दिव्यता की शिक्षा देता है प्रापंचिक-संबंध प्रेम की रस्सी बांधी जाये तो वह प्रपंच देवताओं को भी मत्सर उत्पन्न करने वाला होता है,. आक के प्रपंच और व्यव्हार जीवन में इसका सर्वथा अभाव है. आज़ के संबंध परस्पर हक़ के, अधिकार मांगने वाले ठेके हैं. यह टेका समाज की क्षीण रूढ़ियों से कसा है इसलिये ये संबंध तोड़ना आसान हो गया है. "आज प्रेम के स्थान में भिन्न-भिन्न रूप में अहंकार विराजमान है " 22/09/1960 सूत्र::02 दुर्बल व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता और प्रेमी दुर्बल नहीं रह सकता धैर्यवान,बलवान,श्रेष्ठ