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शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

जी हां अभी मुझे इश्क़ नहीं हुआ

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मीराबाई ब्लाग से साभार (ब्लागर अमृतवाणी)
भक्ति के रंग में सराबोर मीरा का कन्हैया कोई सदेह जीव था कदापि सोचना भी व्यर्थ है. मीरा एक भाव थी जिसको सम्मोहित किया पराशक्ति ने. जिसे ईश्वर कहा जाना ठीक होगा . तो क्या ईश्वर से इश्क़ सम्भव है. सतही तौर पर नहीं. आध्यात्मिक तौर पर सम्भव है. जिसके लिये एक महान तापस-व्यक्तित्व का होना ज़रूरी है. यही तो बुल्ले शा ने किया था. यही सूरा का प्रेम था.  सारे सूफ़ी यही तो कह रहे हैं. मुझे-आप को भी तो इश्क होता है उस परा शक्ति से पर क्षणिक अस्तु एक लम्बे प्रेमी बनने के लिये ज़रूरी है मीरा का भाव बुल्ले का समर्पण यक़ीनन तभी हम दीर्घ प्रेम पाश में बंध पायेंगे. सच है ये इश्क लाखों बार जन्म लेने के बाद कभी किसी  एकाध को ही हो पाता है....!! जी हां अभी मुझे वैसा  इश्क़ नहीं हुआ अभी तक यक़ीनन
यक़ीन नहीं तो इसे सुनना ज़रूर 

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