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बुधवार, 23 जून 2010

खुद जल जल झिलमिल करती जग ,दीपक की वो दीप शिखा सी ...!

पीर भरा मन और मुस्काता साहस का संदेशा लेकर
मीत मिला - एक दोराहे  पे , नाता इक  अनदेखा लेकर !
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खुद जल जल झिलमिल करती जग ,दीपक की वो  दीप शिखा सी ...!
उसका साहस देख चकित मन,  भाग के लेखे स्वयं  मिटाती !!
मीत मिला - एक दोराहे  पे , नाता इक  अनदेखा लेकर !
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कैसे कह दूं और क्या कह दूं ? प्रश्न घूमते मेरे मानस
हो जाता भावुक मन मेरा , नम  आँखों  से करता स्वागत !!
मीत मिला - एक दोराहे  पे , नाता इक  अनदेखा लेकर !

5 टिप्‍पणियां:

  1. गा क्यूँ नहीं रहे आजकल साथ साथ?

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  2. अजिता जी शुक्रिया
    समीर जी आदेश सर माथे
    इन्तज़ार करना होगा

    जवाब देंहटाएं
  3. पीर भरा मन और मुस्काता साहस का संदेशा लेकर
    मीत मिला - एक दोराहे पे , नाता इक अनदेखा लेकर
    बेहद खूबसूरत..

    जवाब देंहटाएं

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