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बुधवार, 9 जून 2010

हां..! ये शाम उस शाम से जारी हर शाम पर भारी

 [Indian-motifs-58.jpg]
हां..! ये  शाम
उस शाम से  जारी
हर शाम पर भारी
जब हुई थी
 मुलाक़ात
खनकती आवाज़
से.... !
आओ..
फ़िर उस पहली शाम को याद करें
रिक्तता में रंग भरें
लौटें उस शाम की तरफ़
जो आज़ हर शाम पे भारी है...!
*************************
वो जो मुझे खींचता है
उस ओर जिधर तुम हो
उसे प्यार का नाम दें  !
आज़ इस बहाने
एक-दूजे का हाथ थाम लें...!!
न तो तुम और नही मैं रिक्त रहूं
न तुम कहो
न मैं सुनूं...!
मैं प्रीत के धागे लेकर आया हूं उलझे हुए
एक शामियाना
हमारे प्यार के लिये
कभी तुम बुनो कभी  मैं बुनूं...!!
[चित्र रानी विशाल जी की पोस्ट न आए विरह की रैन से साभार ]

12 टिप्‍पणियां:

  1. भावों को बहुत खूबसूरती से पिरोया है...

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  2. आप इस समय कहाँ पर हैं कोई अता पता नहीं है....

    जवाब देंहटाएं
  3. जी भैया सी एम साब के कुंडम प्रवास के लिये तैनात था जी

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब...सुंदर भावपूर्ण रचना...बधाई जी

    जवाब देंहटाएं
  5. एक शामियाना
    हमारे प्यार के लिये
    कभी तुम बुनो कभी मैं बुनूं...!!
    अत्यंत मनोहारी, रूमानी और भावपूर्ण रचना
    और फिर शामियाना बुनने की ख्वाहिश के तो क्या कहने
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  6. मैं प्रीत के धागे लेकर आया हूं उलझे हुए
    एक शामियाना
    हमारे प्यार के लिये
    कभी तुम बुनो कभी मैं बुनूं...!!
    --
    बहुत प्यारी अभिव्यक्ति है!

    जवाब देंहटाएं

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