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रविवार, 28 मार्च 2010

बदमाश हवा ने कहा

जानती हो स्वप्न प्रिया इस गुलाब के कानों में बदमाश हवा ने कहा कि  कोई भ्रमर तुमसे अभिसार को आ रहा है और झट उसने सर ठीक वैसे ही झुका लिया जैसे कि तुम जब मुझसे पहली बार मिली थीं .... और मैंने बिन कहे अपने इश्क का इज़हार किया था............तुम्हारी याद में मैंने भी तस्वीर कैद कर ली मोबाइल कैमरे में और तुम्हारी तस्वीर के पीछे लगा ली है.  स्मृतियों को सजीव रखने का एक तरीका है प्रिये ....!
आज मुझे धन कमाने तुमसे दूर जाना  और फिर अचानक तुम्हारा मुझसे बिछड़ना मेरी तड़प का कारण है आज मैं तुमसे दूर हूं पास है खूब अकूत धन किन्तु वो संतोष  जो तुम एक क्षण मुस्कराहट के ज़रिये भेजतीं थीं मेरे ज़ेहन तक इस अकूत धन में कहाँ 

7 टिप्‍पणियां:

  1. और मैंने बिन कहे अपने इश्क का इज़हार किया था'
    अनकहे इजहार की बात ही कुछ अलग है. कहा तो व्यापार में जाता है.
    बहुत सुन्दर रचना

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  2. मधुमय देश हमारा............वाह गुरूदेव वाह। बोलिए।

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  3. बहुत बढ़िया ..मजबूरी में जब आदमी दूर होता है तो यह याद एक सहारा होता है...

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  4. बहुत बढ़िया !!सुन्दर रचना!!

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  5. बहुत सही..किसी भी दौलत में वो ताकत कहाँ.

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