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गुरुवार, 6 अगस्त 2009

भेज दो लिख कर ही प्रेम संदेश


तुम जो रूठ जाती हो मुझसे
डेरों शिकायतों के पुलिंदे खोल देतीं हो
हाँ तब मुझे यकीन हो जाता है तुम सिर्फ़ मेरी प्रिया हो
तुम्हारा अपना चिंतन मुझमें क्या खोज रहा है
अनजान हूँ
जब तब की तुम्हारी उग्रता
अक्सर मुझे संकेत देती है
मैं शायद तुम्हें कुछ पलों के लिए बिसर गया
प्रिया
इस रूठी
भुनभुनाई
आंसू बहाती

तुम जब मेरी आर्त-ध्वनियाँ सुनती हो तब
तुम्हारा मेरे पास आ सहज हो बैठना
मुझे रास आता है
अब खुल के कह दो की तुम ही मुझे प्रीत रंग
से भिगो देने वाली हो
ये बार बार का रूठना
सुकोमल मन को घायल करता है
मुझे आता है पहल करना
प्रीत का अनुनाद मन के विस्तृत आकाश में भरना
परन्तु प्रिया अनुशासन मेरे स्वरों को रोकता है
पहल तुम्हें ही करनी है
भेजना है प्रेम का प्रथम संकेत
सच है न कोई भी पुरूष सर्वप्रथम कभी नहीं खोलता मन के भेद
भेज दो लिख कर ही
प्रेम संदेश

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