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बुधवार, 15 नवंबर 2017

गिरीश के दोहे


काजल बिंदी सूरमा, नैन सजें अरु भाल
सुन प्रिय की पदचाप को, हो गए गाल गुलाल ।।

झूठै कागा बोलते, प्रियतम पथ पै आय ।
झूठी आसा में सखि, दोगुन पाक पकाय ।।

पिया बियाही आत्मा, विरह अगन चहुँ ओर
भोर नींद गहरी लगी, कागा करते शोर ।।

कौई देह की राग संग , कैसे ताल मिलाय ।
जो कस पाए ढोलकी, वोही ताल मिलाय ।।

सुनो मुकुल खुल्ला कहे, बैर प्रीत मदपान
सीमा बंधन होय तो , सब कछु अमिय समान ।।

*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

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