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मंगलवार, 6 जनवरी 2015

पहले सा करने आ जाना : सखी सिंह

मौसम बदल रहां है .... 
सर्द मौसम सभी को जकड़ने को तैयार है ..तुमने ही कहा था न ये मौसम बहुत सुहाना है .
 मेरे बर्फ बने हाथो को जब तुम्हारे ये तपते हाथ छूते है तो सुखद आभास अपने पन का होने लगता है . 
तुम्हारा साथ तुम्हरा प्यार सब कुछ मुझे सातवे आसमान पर बैठाये रखते है . 
कुछ हवाओं को अपने अंचल में बांध कर तुम जब लाती हो तो मैं भी इन हवाओं को तुम्हारे आँचल से अपने कोट की जेब में भर लेना चाहता हूँ . हवाओं का क्या है आज आँचल में बंधी है , कल कहीं बह ना जाये किसी और दिशा में उड़ते आंचलो के छोर में बंधी बंधी. मेरे कोट में अब प्यार के सुर्ख रंग से लबरेज तुम्हारा साथ भी कैद कर लिया है मैंने.
हर मोड़ पर तुम्हारी जरूरत है मुझे ..पर हर जरुरत में तुम हो ये जरुरी तो नहीं . धूप ढलक कर आंगन में उतर रही है ....सीढ़िया फलागते यादों के नन्हे पैर न जाने कब अंतिम सीढियो को भी पार कर गए है ..जरा भी पता न चला ...नन्हे नन्हें कदम बढ़ा कर तुम्हारी यादों ने कब मन के कमरे में दाखिला ले लिया और आकर पसंर गयी बिस्तर पर खबर ही नहीं हुई . बिस्तर की सिलवटों में यादों के दरिये बह रहे है , आँखों के रास्ते भीगते भीगते कुछ सपने कमरे में टहल रहे है . नम होने लगी कमरे की हवाओं को महसूस करती है मेरी गर्म हथेली ..कब आके थम लोगे मेरी इन हथेलियों को जो अब सर्द बर्फ का अहसास करा रही है मुझे. सोचते सोचते कुछ ख्याल गालों को थपथपा गए है . मौसम और बदले उसके पहले सब पहले सा करने आ जाना .

सखी सिंह :- Facebook 

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