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मंगलवार, 22 जुलाई 2014

फूल, किताबें और एक तस्वीर...: फ़िरदौस ख़ान

     हमारे कमरे में क़दम रखते ही सबसे पहले नज़र पड़ती है...फ़र्श पर बिछी चांदनी पर...गहरे हरे रंग की ज़मीन पर हल्के बादामी रंग के बड़े-बड़े फूल बहुत ही ख़ूबसूरत लगते हैं...
कमरे में सफ़ेद और सुर्ख़ रंग के फूलों की बहार है...मुझे सफ़ेद फूल पसंद हैं तो उन्हें सुर्ख़ फूल...इसलिए कमरे में दोनों ही तरह के फूल अपनी मौजूदगी का ख़ुशनुमा अहसास कराते हैं...
इसके बाद बारी आती है किताबों की...हमारे पास बहुत सी किताबें हैं...घर पर तो अच्छी ख़ासी लाइब्रेरी है...सबसे ज़्यादा उर्दू की किताबें हैं...दूसरे तीसरे और चौथे दर्जे पर बारी आती है पंजाबी, हिन्दी और अंग्रेजी की किताबों की...हिन्दी में रूसी साहित्य की किताबों का अच्छा ख़ासा ज़खीरा है... अम्मी को उर्दू और अरबी की किताबें पसंद हैं. भाई को पत्रकारिता, पशु-पक्षियों और बाग़वनी की... यहां यानी दिल्ली में भी हमारे पास किताबों का ज़खीरा है...हम अकसर किताबें ख़रीदते रहते हैं...इसके अलावा समीक्षा के लिए प्रकाशक भी ढेरों किताबें भेजते रहते हैं...

किताबों की अपनी ही एक दुनिया है. कहते हैं किताबों से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता. कॉलेज के वक़्त हर महीने आठ से दस किताबें पढ़ लेते थे. लाइब्रेरी में उर्दू और पंजाबी की किताबें पढ़ने वाले हम अकेले थे. उर्दू या पंजाबी का कोई बुज़ुर्ग पाठक कभी साल-दो-साल में ही वहां आता था. कई बार लाइब्रेरी के लोग किताबों को तरतीब से लगाने के लिए हमारी मदद लेते थे तो कभी फटी पुरानी या कभी-कभी नई किताबों के नाम, लेखक और प्रकाशक के नाम हिन्दी में लिखने में. हमें यह सब काम करना बहुत अच्छा लगता था.

किताबों से मुताल्लिक़ एक ख़ास बात. कुछ लोगों की आदत में शुमार होता है कि वो अच्छी किताब देखते ही आपसे मांग लेंगे. आपने एक बार किताब दे दी तो फिर मजाल है कि वो आपको वापस मिल जाए. किताबों के पन्ने मोड़ने, पैन से लाइनें खींचकर किताबों की अच्छी सूरत को बिगाड़ने में भी लोगों को बहुत मज़ा आता है. हमारे पास मुल्क के नामी कहानीकारों की कहानियों का एक संग्रह था. एक रोज़ हम उसे अपने साथ दफ़्तर ले गए  एक लड़की ने हमसे मांग लिया. कई महीने गुज़र गए, लेकिन उसने वापस नहीं किया. हमें पूछा तो कहने लगी-वक़्त ही नहीं मिला. खैर क़रीब दो साल बाद हमारा उसके घर जाना हुआ तो उसने उसे लौटा दिया. लेकिन उसे वापस पाकर हमें बेहद दुख हुआ. तक़रीबन हर सफ़े पर पैन से लाइनें खींची हुईं थीं. कवर पेज भी बेहद अजनबी लगा. जब भी उस किताब को देखते तो बुरा लगता. छोटे भाई असलम ने हमारी  सालगिरह पर नई किताब लाकर दी और उस किताब को अलमारी से हटा दिया. ऐसे कितने ही क़िस्से हैं अपनी प्यारी किताबों से जुदा होने के...

कहते हैं कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं, जिन्हें देखकर ख़ुशी हासिल होती है...किसी मासूम से चेहरे की मुस्कराहट आपकी सारी थकन मिटा देती है...आपको ताज़गी से सराबोर कर देती है...आप अपनी सारी उदासी और तन्हाई को भूलकर तसव्वुरात की ऐसी दुनिया में खो जाते हैं, जहां सिर्फ़ आप और आप ही होते हैं...या फिर आपका कोई अपना... हम बात कर रहे हैं एक तस्वीर की...एक ऐसी तस्वीर की, जो हमें बहुत अज़ीज़ है...इस तस्वीर का क़िस्सा भी बहुत दिलचस्प है... हम किसी काम से बाज़ार गए, वहां हमें एक फ़ोटोग्राफर की दुकान दिखाई दी... काफ़ी अरसे से हमें एक तस्वीर बड़ी करानी थी...हमने वहां बैठे लड़के से कहा कि भैया हमें इस तस्वीर की बड़ी कॉपी चाहिए...उसने कहा ठीक है- 100 रुपये लगेंगे...हमने हज़ार का एक नोट उसे पकड़ा दिया...उसने हमें नौ सौ रुपये वापस कर दिए और एक बड़ी तस्वीर दे दी...हम तस्वीर पाकर बहुत ख़ुश थे...  उस वक़्त हमारे साथ हमारे एक दोस्त थे, उन्होंने कहा कि उस लड़के ने तुमसे एक ज़ीरो ज़्यादा लगाकर पैसे ले लिए...हमने कहा कि एक क्या वो दो ज़ीरो ज़्यादा लगाकर पैसे मांगता तो भी हम दे देते, क्योंकि जहां प्यार होता है, वहां मोल-भाव नहीं होता...यह तस्वीर हमारे लिए अनमोल है...
उस वक़्त लगा कि हमारे सामने एक गूजरी खड़ी मुस्करा रही है...एक बहुत दिलचस्प कहानी है...किसी डेरे पर एक फ़क़ीर आकर रहने लगा...वह एक पेड़ के नीचे बैठा इबादत करता...  फ़क़ीर हर रोज़ देखता कि गूजरी दूध बेचने के लिए रोज़ वहां आती है...वो बहुत माप-तोल के साथ सबको दूध देती, लेकिन जब एक ख़ूबसूरत नौजवान आता तो उसके बर्तन को पूरा दूध से भर देती, यह देखे बिना कि बर्तन छोटा है या बड़ा... एक रोज़ फ़क़ीर ने गूजरी से पूछा कि  तुम सबको तो बहुत माप-माप कर दूध देती हो, लेकिन उस ख़ूबसूरत नौजवान का पूरा बर्तन भर देती हो... गूजरी ने मुस्कराते हुए फ़क़ीर को जवाब दिया कि जहां प्यार होता है, वहां मोल-भाव नहीं होता...

हां, तो यह तस्वीर सिर्फ़ हम ही देख पाते हैं, क्योंकि यह हमारी डायरी में रहती है...उन नज़्मों की तरह, जो हमने सिर्फ़ अपने महबूब के लिए लिखी हैं... 

जाने कब तक तेरी तस्वीर निगाहों में रही
हो गई रात तेरे अक्स को तकते तकते
मैंने फिर तेरे तसव्वुर के किसी लम्हे में
तेरी तस्वीर पे लब रख दिये अहिस्ता से...  परवीन शाकिर  

गुरुवार, 17 जुलाई 2014

जाग विरहनी प्रियतम आए !!

देह राग नवताल सुहानी !
मानस चिंतन औघड़ धानी !!
भ्रम इतना मन समझ न पाए !
अन्तस-जोगी टेर लगाए
जाग विरहनी प्रियतम आए !!

मन आगत की करे प्रतीक्षा !
तन आहत क्यों करे समीक्षा !!
उलझे तन्तु सुलझ न पाए !
मन का पाखी नीर बहाए !!
जाग विरहनी प्रियतम आए !!


इक मन मोहे ज़मीं के तारे
छब तोरे नूर की एक निहारे !
प्रियतम पथ की बावरी मैं तो
भोर-निशा कछु समझ न आए !!
जाग विरहनी प्रियतम आए !!

गुजरात का गरबा वैश्विक हो गया

  जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर गुजरात   के व्यापारियो...