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शनिवार, 31 मई 2014

जो भी हो तुम इक मदालस प्रीत की अंजोरी हो

प्रीत डूबे चितवनों में क्या लिखा है जानती हो
आईना भी मुग्ध तुम पर क्या आईने पहचानती हो ?
जो भी हो तुम इक मदालस प्रीत की अंजोरी हो
अपने अनुपम रूप की तासीर क्या है जानती हो..!!

मत समझना आईना तुम देखती हो     
आईना खुद तुम पे आशिक हो गया है
आईने चुपचाप है और मौन भी है
रूप के सागर में तुम्हारे खो गया है
            तुम छवि मैं आईना हूं.. मानती हो...!!

अबोली तुम कह रही क्याजानता हूं..!
तुम्हारी हर अदा को पहचानता हूं..!!
प्रीत पथ पे कब चला अनभिग्य हूं...
पस तुम्हारे पथ को ही पहचानता हूं..!!
         ओ, सुनयना.. सच बताना क्या मुझे पहचानती हो !!





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