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खोज नतीजे

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

बताओ आओगी न मिलने अबके फ़ागुन में..?



तुम्हारी प्रीत वाली छाँह 
को खोजने निकला
ये मन ही है जो 
रात भर सोने नहीं देता ...!
कि तुमने मुस्कुराके कसम खाई थी
मिलने की 
वो मंज़र रोज दिखता है 
तुम्हैं मुझसे मिलाता है 
प्रिया 
सच वो ही मंज़र 
विस्मृतियों के बीहड़ में
तुम्हैं मुझसे विलग होने नहीं देता !! 
सोचता हूं कि तुमसे दूर हूं तुम पास आती हो
हरेक पल साथ देने का वही वादा निभाती हो
तुम्हें गर इस कदर जुड़ना था
हमसे  दूर 
न जाते रुक जाते

विरह की वेदना में न हम तड़पते 
और तुम भी चैन से सो पाते ।।
बहुत तड़पाती हैं जब याद आतीं है मृदुल बातें
अमिय  से लबालब हिरनी की चंचल सी  आँखें
धड़कन तेज़ 
होती हैं  कभी रुक जाती हैं सांसे
तुम्हारी याद जो आती तो खिल जाती है ये बांछैं 
बताओ  आओगी न मिलने  अबके फ़ागुन में..?



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