भाँय -भाँय करता वृन्दावन वंशी के स्वर विह्वल
ऊधौ ! बदल गया बृजमंडल।
गोकुल नंदगाँव बरसाना जहाँ रंभाती गैया
ग्वाल-बाल मुरली की धुन पर करते थे ता-थैया
चूड़ी के संग रार मचाती रोज मथानी भैया
प्रात कलेवा माखन मिसरी देती जसुमति मैया
देखे बिना श्यामसुंदर को
राधा का मन चंचल।
तरु कदम्ब थे जहाँ उगे हैं कंकरीट के जंगल
राकबैंड की धुन पर गाते भक्त आरती मंगल
जींस टॉप ने चटक घाघरा चोली कर दी पैदल
दूध दही को छोड़ गूजरी बेंचें कोला मिनरल
शाश्वत प्रेम पड़ा बंदीगृह
नये चलन उच्छ्रंखल।
ऊधौ ! बदल गया बृजमंडल।
गोकुल नंदगाँव बरसाना जहाँ रंभाती गैया
ग्वाल-बाल मुरली की धुन पर करते थे ता-थैया
चूड़ी के संग रार मचाती रोज मथानी भैया
प्रात कलेवा माखन मिसरी देती जसुमति मैया
देखे बिना श्यामसुंदर को
राधा का मन चंचल।
तरु कदम्ब थे जहाँ उगे हैं कंकरीट के जंगल
राकबैंड की धुन पर गाते भक्त आरती मंगल
जींस टॉप ने चटक घाघरा चोली कर दी पैदल
दूध दही को छोड़ गूजरी बेंचें कोला मिनरल
शाश्वत प्रेम पड़ा बंदीगृह
नये चलन उच्छ्रंखल।