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शनिवार, 27 अप्रैल 2013

तुझ से मिल कर चार दिन इक ख़्वाब में खोया रहा : अमिताभ मीत

अमिताभ मीत
वैसे गर देखो, तो क्या है जो मुझे हासिल नहीं
एक तेरे प्यार की दौलत फ़क़त हासिल नहीं
आरज़ूओं का तलातुम दिल में है, पर है ख़बर
चाहे जैसा हो, मेरा दिल प्यार के क़ाबिल नहीं

कुछ नहीं बस में मेरे, ना अपना दिल, ना तेरा प्यार
और मेरे दिल, ज़िन्दगी, और जाँ पे तेरा इख्तियार
एक बस ये ख़्वाब ही था मेरे बस में ऐ सनम !
तू ही है वो ख़्वाब मेरा, तू ही है वो मेरा प्यार

ख़्वाब जब तक ख़्वाब है, वो तब तलक ही पाक है
वरना इस दुनियाँ में क्या है, ऐब जिसमें कुछ न हो
यूँ तो सच होना यूँ ही मुमक़िन नहीं इस ख़्वाब का
और ख़ुदा की ज़िद, मैं जो मांगूँ, मुझे हासिल न हो

तुझ से मिल कर चार दिन इक ख़्वाब में खोया रहा
उम्र भर उस ख़्वाब की ताबीर अब देखूंगा मैं
तू मेरा वो ख़्वाब है जो ज़ीस्त से भी है हसीं
सच न होने देना तुम, और टूटने ना दूँगा मैं

आरज़ू अब इस दिल-ए-बरबाद की बस एक है
उम्र भर सोया रहूँ, ये नींद अब टूटे नहीं
या ख़ुदा ! ये हाथ पहली बार फैलाता हूँ मैं
जब तलक है ज़िंदगी, ये ख़्वाब अब टूटे नहीं

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