प्रेम का सन्देश देता ब्लॉग

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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

जब इश्क़ है तो हुस्न की परवाह मत करो


इक मासूम से चेहरे पे मुस्कान ज़िंदगी
बच्चे के लिये बलून की दूकान ज़िंदगी .

उसने दिल की बात खुल के कभी न की
हमने  कही जो अपनी, थी हैरान ज़िंदगी.

 इज़हार-ए-इश्क करना ज़रूरी है मेरी जां-
कब तक रखोगी  अपनी सुनसान ज़िंदगी .

अब आईने के सामने सजना संवरना छोड़
अब और कितने लाओगी तूफ़ान ज़िंदगी ..?

जब इश्क़ है तो हुस्न की परवाह मत करो
हाफ़िज़ बनेगें हम तेरे ऐ .. मेहमान ज़िंदगी ..


जब से मिली हूं मिलने के  रस्ते तलाशती
तुम मिले तो मिलती है मुस्कान ज़िंदगी ..

खुद खाक में मिल जाओ या फ़ाक़ा कशी करो
मुश्किल से मिला करती है पहचान - ज़िंदगी !!

चाहत की तला तुम में , डूबेगा सफ़ीना
उट्ठो करो ग़ैरों पे कु़रबान ज़िंदगी !!





मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

सुना है शाह बेखबर है नीरो के जैसा


रोज़िन्ना शाम  
वो चहचहाते थे
टहनियों पे...!
खूब मस्ती भी करते थे परिंदे
कभी डपटा पीपल ने नहीं उनको
पड़ौसी आम को भी शिकायत नहीं की उनसे ...!
परिंदे जब रात को
बिल्ली की आमद जान लेते जब
एक सुर में चीखते चिल्लाने लगते थे
जिसे सुन बिल्ली भाग जाती !
किसी घर की खुली खिड़की से
चुपचाप घुस कर कुछेक चूहे या फ़िर
दूध बच्चों का चुराती..!!
रोज़िन्ना शाम  
चहचहाने वाले उन परिंदों का मैं आदी हूं -
मेरी कविता में अनोखे शब्द भरने वाले परिंदे
मेरे आंगन की सही पहचान करने वाले परिंदे  
आज़ की शाम लौटे नहीं हैं
पत्तियां पत्तियों से लड़ रहीं हैं
टहनियां बेसुधी में  हैं .. घौंसलों में सभी अंडे
दरक के बह निकले...  
वो मस्तैली चिरकुट बिल्ली मुहल्ले की
रात भर रोती रही फ़िर फ़िर के
सभी सदमें में हैं
बिल्ली, पत्तियां, टहनियां और मैं
तुम जानते हो
रात पिछली दरिंदों ने 
छिपाके बारूद रक्खा था उसी पेड़ के नीचे
सुबह स्कूल वाले कुछ बच्चे , मोची, पेप्पोरवाला
खबर ऐसी ही रोज़िया चैनल पे चली दिन भर
सुना है शाह बेखबर है नीरो के जैसा
उसको परिंदों,पीपल,बिल्ली, मोची, बच्चों,  पेप्पोरवाले
के बीच का रिश्ता नही मालूम !
कभी उसने मेरी कविता पढ़ी होती
तो वो जानता कि
बिल्लियां क्योंकर रोतीं 

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

दुविधा


मेरे कमरे में अब
धूप नहीं आती
खिड़कियाँ खुली रहती हैं
हल्की सी रौशनी है
मन्द मन्द सी हवा
गुजरती है वहाँ से
तोड़ती है खामोशी
या शुरू करती है
कोई सिलसिला
किसी बात के शुरू होने
से खतम होने तक का ।
कुछ पक्षी विचरते हैं
आवाज़ करते हैं
तोड़ देते हैं अचानक
गहरी निद्रा को
या आभासी तन्द्रा को ।
कभी बिखरती है
कोई खुशबू फूलों की
अच्छी सी लगती है
मन को सूकून सा देती है
पर फिर भी
नहीं निकलता
सूनापन वो अकेलापन
एक अंधकार
जो समाया है कहीं
किसी कोने में ।
©दीप्ति शर्मा



बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

तुम पहनो या न पहनो तुम्हारी मुस्कान गहना !!

प्रीत का पावन महीना
और तुम्हारा व्यस्त रहना
बताओ प्रिय और कब तक
पड़ेगा मुझको ये सहना ?

चेतना में तुम ही तुम हो
संवेदना में भी तो तुम हो !
तुम पहनो या न पहनो
तुम्हारी मुस्कान गहना !!

लबों का थोड़ा सा खुलना
पलक का हौले से गिरना
समझ लेता हूं प्रिया तुम
चाहती हो क्या है कहना !!

मदालस हैं स्वर तुम्हारे
सहज हो  जब जब उचारे !
तुम्हारी सखियां हैं चंचल
उनसे तुम कुछ भी न कहना

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

बस इसी आभासी दुनिया में उसका भी ठिकाना है :सुनीता शर्मा


वो हवा के झोंके सा आया .
मेरे तनहा जीवन में .
एक आस सजाने लगी .
मैं वीरान उपवन में ..
कब वो जीवन का .
एक हिस्सा बन गया .
रोज याद करूँ .
यादगार किस्सा बन गया .
न देखा उसे .
न जाना है ..
बस इसी आभासी दुनिया में
उसका भी ठिकाना है .
रोज शाम परिंदे की तरह ,
हम फेसबुक की डाल पर मिलते हैं .
करते हैं , एक दूजे से गिले शिकवे ..
फिर भी मिलने को तरसते हैं .
आज जुकर बर्ग की मेहरबानी .
की शब्दों का आकर मिला .
तनहा जिन्दगी में .
दोस्तों का संसार मिला .
इस अंतरजाल की ,
नवमी वर्षगाँठ में ..
हर दोस्त को दिल से दुआ है .
आभासी कहते हैं इसे जरुर .
पर इसने सत्य को जिया 

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

मुकुल के दोहे


फ़ागुन बेढप सा लगे, मौसम करे निरास ,
प्रिय बिन जारी है यहां, आंखों का उपवास !!
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नेह निवाले हाथ में, थामू कब तक बोल ?
मुझे देखना छोड़ के कान्हा अब मुंह खोल !!
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प्रीत पगी बानी सुनी, बढ़ा रक्त संचार
पागल मुझको कह रहा, ख़ुद  पागल संसार !!
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बीते पल पीछा करें, मन में भरा मलाल
इस फ़ागुन बेकार सब, टेसू-रंग-गुलाल !!
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और अब  सुनिये ये गीत

गुजरात का गरबा वैश्विक हो गया

  जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर गुजरात   के व्यापारियो...