प्रेम का सन्देश देता ब्लॉग

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सोमवार, 27 अगस्त 2012

एक गीत प्रीत का गुन गुना रहा है मन






थी  चपल हुई सरल , प्रेम राग है यही
नयनों ने कह डाली बातें सब अनकही
नेह का निवाला लिए दौड़ती फिरूं मैं क्यों
पीहर के संयम को आजमा रहा है मन !
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भोर की प्रतीक्षिता,कब तलक रुकूं कहो
सन्मुख प्रतिबंधों के कब तलक झुकूं कहो
बंधन-प्रतिबंधन सब मुझ पे ही लागू क्यों
मुक्त कण्ठ गाने दो जो गुनगुना रहा है मन
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बैठीं हूं कब से    प्रीत के निवाले ले
मन में   उलझन, हिवडे में छाले ले
बेसुध हूं सोई नहीं.. चलो माना नींद यही
मत जगाओ सोने दो कसमसा रहा है मन
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शनिवार, 25 अगस्त 2012

उष्ण स्वांसों को अवरोधित करती तुम्हारे आने की आह

साभार : राजेश खेरा जी
उष्ण स्वांसों को अवरोधित
करती तुम्हारे आने की आहट
शायद अब कब किधर कैसे आएंगीं
जानती हूं की तुम दूर बहुत दूर हो
फ़िर यकबयक जाने
किधर से कैसे और  क्यों आ जातीं हैं !!
शायद तुम मुझसे जितने दूर हो
उतने पास महसूस करती मैं
सबकी नज़रों में एक पागल-दीवानी हूं..
तुम्हारी प्रीत के  महाकाव्य की एक छद्म कहानी हूं !!
सच सावनी विरह का अंत
अक्सर
बेखुदी
बेखयाली
और और क्या
बस तुम्हारे पास होने के
आभासी एहसास के अलावा और कुछ भी नहीं




मंगलवार, 21 अगस्त 2012

तुम जो देह-मंजूषा खोल जा चुके हो

तुमको निहारते नयन अब
अभ्यस्त हो चुकें हैं
तुम्हारे आने वाले पथ को
बिना तुम्हारे आने जाने वालों की
भीड़ को देखने..!
हो सकता है
भीड़ वाले किसी झुण्ड के पीछे
तुम्हारा मेरे क़रीब आता
चेहरा आए क़रीब और क़रीब
तपाक से कह दें -"सारी,..."
पर शायद अब ये न हो,
सकेगा कभी भी,
तुम जो देह-मंजूषा
खोल जा चुके हो
सुदूर पेटियां तलाशने..
इसे प्रीत कैसे कहूं..?
कब तक चुप रहूं
मैं जो संस्कारों की बेड़ियो में जकड़ी हूं
तुम्हारे बनाए नियम
काश एकाध मैं भी बना पाती ऐसा कोई एक ..!!

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका- जिसे तपा के जांचा जाए.




जितनी बार बिलख बिलख के रोते रहने को मन कहता
उतनी बार मीत तुम्हारा भोला मुख सन्मुख है रहता....!
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सच सच तो है अखबार नहीं तुम,
जिसको को कुछ पल बांचा जाये.
न ही तुम हो स्वर्ण-मुद्रिका-
जिसे तपा के जांचा जाए.
मनपथ की तुम दीप शिखा हो
यही बात हर गीत है कहता
जितनी बार बिलख बिलख के ...............
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सुनो प्रिया मन के सागर का
जब जब मंथन मैं करता हूं
तब तब हैं नवरत्न उभरते
हरेक रतन तुम्हारे जैसा..?
न ! तुम ही हो ये मन कहता है.

जितनी बार बिलख बिलख के ...............
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रविवार, 12 अगस्त 2012

सच तुम जो भी हो आभासी नही



साभार : ब्लॉग "लाइफ" से
तुम्हारी प्यार भरी
भोली भाली बातें
सुन
बन जातीं हैं रातें लम्बी रातें
तुम कौन हो ? क्यों हो ?
इस आभासी दुनिया
के उस पार से
जहां एक तिनके की आड़ लेकर
देख रहीं हो कनखियों से
कह देतीं हो वो
जो
कलाकार गढ़तें है
वही जो गीतकार रचते हैं
फ़िर भी खुद से पूछता हूं
कल पूछूंगा उनसे तुम कौन हो ?
सच तुम जो भी हो आभासी नही
 प्रेम की मूर्ति
 हां वही हो जो
गढ़तें हैं लिखते हैं
कलाकार गीतकार 

गुजरात का गरबा वैश्विक हो गया

  जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर गुजरात   के व्यापारियो...