सोमवार, 28 मई 2012
सोमवार, 21 मई 2012
तू हो गयी है कितनी पराई ।
अथाह मन की गहराई
और मन में उठी वो बातें
हर तरफ है सन्नाटा
और ख़ामोश लफ़्ज़ों में
कही मेरी कोई बात
किसी ने भी समझ नहीं पायी
कानों में गूँज रही उस
इक अजीब सी आवाज़ से
तू हो गयी है कितनी पराई ।
अब शहनाई की वो गूँज
देती है हर वक्त सुनाई
तभी तो दुल्हन बनी तेरी
वो धुँधली परछाईं
अब हर जगह मुझे
देने लगी है दिखाई
कानों में गूँज रही उस
इक अजीब सी आवाज़ से
तू हो गयी है कितनी पराई ।
पर दिल में इक कसर
उभर कर है आई
इंतज़ार में अब भी तेरे
मेरी ये आँखें हैं पथराई
बाट तकते तेरी अब
बोझिल आहें देती हैं दुहाई
पर तुझे नहीं दी अब तक
मेरी धड़कनें भी सुनाई
कानों में गूँज रही उस
इक अजीब सी आवाज़ से
तू हो गयी है कितनी पराई ।
© दीप्ति शर्मा
और मन में उठी वो बातें
हर तरफ है सन्नाटा
और ख़ामोश लफ़्ज़ों में
कही मेरी कोई बात
किसी ने भी समझ नहीं पायी
कानों में गूँज रही उस
इक अजीब सी आवाज़ से
तू हो गयी है कितनी पराई ।
अब शहनाई की वो गूँज
देती है हर वक्त सुनाई
तभी तो दुल्हन बनी तेरी
वो धुँधली परछाईं
अब हर जगह मुझे
देने लगी है दिखाई
कानों में गूँज रही उस
इक अजीब सी आवाज़ से
तू हो गयी है कितनी पराई ।
पर दिल में इक कसर
उभर कर है आई
इंतज़ार में अब भी तेरे
मेरी ये आँखें हैं पथराई
बाट तकते तेरी अब
बोझिल आहें देती हैं दुहाई
पर तुझे नहीं दी अब तक
मेरी धड़कनें भी सुनाई
कानों में गूँज रही उस
इक अजीब सी आवाज़ से
तू हो गयी है कितनी पराई ।
© दीप्ति शर्मा
रविवार, 20 मई 2012
जब हम तुम नज़दीक नहीं तो- होता है सांचा अभिसार !!
विरह ताप से रिसें जो रिश्ते कैसे फ़िर पाएं आकार ?
एहसासों के बंधन को , मत कहिये इक जनव्यव्हार !!
***********
अनुबंधों से प्रतिबंधों तक सब कुछ मेरा तेरा है.....
प्रीत हुई तो सब कुछ "अपना" ना कुछ तेरा-मेरा है !
ध्यान से सुनना मन की वीणा यही कहे है हर झंकार !!
एहसासों के बंधन को , ....... !!
***********
प्रीत-आधारी दुनियां साथी,शेष सभी कुछ उजड़ा वन है !
जब हम तुम नज़दीक नहीं तो- होता है सांचा अभिसार !!
एहसासों के बंधन को , ......... !!
***********
न तुम भटको न मैं अटकूं, चिंता के इस बयाबान में
एक कसम हम दौनों ले लें-रहें हमेशा एक ध्यान में !
प्रीत प्रियतम एक पावन पूजा,न तो तिज़ारत न व्यापार
एहसासों के बंधन को , ......... !!
***********
रविवार, 13 मई 2012
जेब से रेज़गारी जिस तरह गिरती है सड़कों पे तुमसे प्यार के चर्चे कुछ यूं ही खनकते हैं....!!
उजाले उनकी यादों के हमें सोने नहीं देते.
सुर-उम्मीद के तकिये भिगोने भी नहीं देते.
तुम्हारी प्रीत में बदनाम गलियों में कूचों में-
भीड़ में खोना मुश्किल लोग खोने ही नहीं देते.
*************
जेब से रेज़गारी जिस तरह गिरती है सड़कों पे
तुमसे प्यार के चर्चे कुछ यूं ही खनकते हैं....!!
हुदूदें तोड़ कर अब आ भी जाओ हमसफ़र बनके
कितनी अंगुलियां उठतीं औ कितने हाथ उठते हैं.?
*************
मंगलवार, 1 मई 2012
बात अधूरी रह जाती है..
साभार अनिल कार्की जी के ब्लाग अंधेरे में...... से |
अक्सर तुम से जब मिलती हूं
कुछ कहना था कुछ कहती हूं.
मुद्दे पर आते आते
हया सामने आ जाती है..
बात अधूरी रह जाती है...!!
तुमसे ये कहना था
वो सुनना था
सब कुछ
बिसरी तुम्हैं देख कर
डूब गई फ़िर प्रीत धुंध में
जाने कल फ़िर मिलो न मिलो..!
कुछ कहने को जब जी ने चाहा
तुम बोले अब मैं जाता हूं-
अवसर मिलते ही आता हूं..
ऐसे कितने वादे सहती हूं
सूनी सूनी मेरी रातें
मुझसे तारे गिनवातीं हैं..!!
जब बात अधूरी रह जाती है...!!
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
गुजरात का गरबा वैश्विक हो गया
जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर गुजरात के व्यापारियो...
-
तुम चुप क्यों हो कारण क्या है ? गुमसुम क्यों हो कारण क्या है ? जलते देख रहे हो तु...
-
पाकिस्तान में महिला अधिकारों को लेकर हम सब केवल इतना जानते हैं कि वहां महिलाओं को कोई खास अधिकार प्राप्त नहीं है। परंतु हिंदूकुश...
-
तूने दस्तक ज़रूर दी होगी..? मै वो आवाज़ नहीं सुन पाया कितनी आवाज़ें गिर्द मेरे हैं तेरा एहसास नही हो पाया ! ************** हर तरफ़ शोर ...