तुम्हारा आना खबर सुहानी तुम्हारी तरह हुईं खबर अब !
बहुत दिनों से मैं मुतज़िर हूं, कि रेज़ा रेज़ा हुई *सबर अब !!
चले जो इक पल सवाल संग थे, कहां थे तन्हा तुम्ही कहो न-
थे तुम अबोले हमारी चुप्पी उसी कसक का हुआ असर अब !!
ये दिल की लहरें समंदरों के उफ़ान से हैं सदा बराबर -
झुकी निगाहों का काम अब ये गिना करें हैं वो हरेक लहर अब !!
विरह के सागर से जाके मिलतीं, हज़ारों सरिता मिलन की अक्सर
हुईं हैं शामिल तड़पती शामें.. औ’ ज़िंदगी में तन्हां सहर अब !!
(*सबर = सब्र के लिये बोलचाल में उपयोग में लाया जाने वाला शब्द )
आपकी पोस्ट बुधवार (24-10-2012) को चर्चा मंच पर । जरुर पधारें ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ ।
आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावपूर्ण गजल...
जवाब देंहटाएं:-)