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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

भाई से पिटें तेरे या छ्ज्जे से गिरें हम

इज़हारे इश्क  में ज़ख्म, मिलना है तय शुदा
भाई से पिटें तेरे या छ्ज्जे से गिरें हम
इक संत का सिखाया इश्क़ सबसे कर के देख
काफ़ी घरों में बेहूदा नुमाइश न करें हम..!!
हर गुल की पंखुरी चिकनी ही है होती-
बेवज़ह चमेली को न बदनाम करें हम ...!!


 .

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