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सोमवार, 7 नवंबर 2011

सच हम अपने सपनों को अतीत के धवल-पन्नों

चित्र साभार: हिंदी-साहित्य

तुमसे अक्सर
बातौं-बातौं में
पूछता हूं-
" क्या तुम्हैं मुझसे प्यार है..?
तुम नि:शब्द हो जाती
अतीत के धवल पन्नों को
 देखती हो
और मैं फ़िर एक बार
उस अतीत में पहुंच
खुद को खड़ा करने की
असफ़ल कोशिश करता हूं
उत्तर की
प्रतीक्षा में
अपने कल के लिये
एक धवल अतीत बनाता हूं मैं
और तुम कहती हो
अचानक
अब जाना होगा
सच हम अपने सपनों को
अतीत के धवल-पन्नों
उकेरें तो
बताओ..?
कैसा होगा ..?
 

    

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दरता से सच्चाई को शब्दों में पिरोया है! शानदार प्रस्तुती!

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  2. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..!

    जवाब देंहटाएं

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