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गुरुवार, 31 मार्च 2011

पहली बार जुदाई सहना ज़हरीले सांपों संग रहना



न मिलते तो प्रीत न होती
प्रीत न होती  जीत न होती
बाद जीत के ओझल होना
पोर-पोर का घायल होना
पाया है तो खोने का भय
सुबक-सुबक  रो लेने का भय
प्रीत के तागों ने मन बांधा
तुमने प्रिय मुझको यूं साधा..
जानूं न ….धीरज न  संयम
मन भावन अब ….तुम्हरा बंधन
प्रीत में पहली बार जुदाई
मेरी सांसों पे बन आई....!
धूप तपन जाड़ा अरु बारिश
 है सहना ये सब मुमकिन सा.
पर प्रियतम अब तुम क्या जानो 
युग सा बीता विरह का दिन था
पहली बार जुदाई सहना 
ज़हरीले सांपों संग रहना .
आशंकित मन,भय-मिश्रित तन
तुम बिन डसता तन को गहना

6 टिप्‍पणियां:

  1. गिरीशजी क्‍या खूब लिखा है, मैंने तो पहली बार ही आपकी पद्य रचना पढ़ी है तो मैं तो आपकी कायल हो गयी।

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  2. क्या बात हैं दर्द को आप शब्दों में उतरने की जादूगरी भी रखते हैं चर्चा लिखने के अलावा |
    बेहद सुनदर भाव |

    जवाब देंहटाएं
  3. पहली बार जुदाई सहना
    ज़हरीले सांपों संग रहना... gr8

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!! मन खुश हो गया...क्या बेहतरीन रचा है...

    जवाब देंहटाएं
  5. पहली बार जुदाई सहना
    ज़हरीले सांपों संग रहना .
    आशंकित मन,भय-मिश्रित तन
    तुम बिन डसता तन को गहना

    विरह को नयी अभिव्यक्ति दी है आपकी कलम ने.
    बहुत बढ़िया रचना

    जवाब देंहटाएं

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