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सोमवार, 21 मार्च 2011

आभासी अनुभूतियां

    वो एक करिश्मा है. जो दिन रात एक बस मेरे खयालों में शामिल है. उसे देखते ही प्यार के बादलों में सावन की तरह जम जाने और फ़िर रिस रिस के उसे भिगोने को जी चाहता है. यूं तो मुझे नेट पर कई मिले हैं जो खुद ब खुद मेरे करीब आते. फ़िर थोड़ा बहुत मिल मिला कर मेरे ब्लाग की झूठी-सच्ची तारीफ़ फ़िर मिलने का बहाना न चूकते पर वो ऐसा जिसे न मै भूल पाई न ही भूलना चाहती हूं. सवाल यह भी कि वो जो मेरी सासों में शनै:शनै: घुलता जा रहा  सच है या एक आभासी व्यक्तित्व . सोचते मेरी कब आंखें लग गईं मालूम नहीं डेस्क-टाप पर स्क्रीन-सेवर की मछलियां जाने कब धींगा मस्ती करने लगीं मैं बेखबर सी उसनींदी रिवाल्विंग-कुर्सी पर निढाल थी.  मन की बेचैनी ने सांसों को भड़का दिया और सांसों ने धड़कनों को को रफ़्तार दी. मुझे प्यार की अनुभूती हो गई बार बार जाने क्यों लग रहा है यही तो सच है.
      मेरे साथ किसी  का होना न होना बराबर है ये अलग बात है कि मुझे पहला प्यार इनसे ही हुआ था. है भी रहेगा भी मेरी तरफ़ से पर ये क्या मुझे जिसकी तलाश थी वो नहीं है उसमें मुझे आज़ मिल गया आभासी दुनिया में वो जिसकी तलाश थी . क्या करूं तलाशना सही था या ग़लत मैं क्या जानूं.   सोचतीं हूं खुद-ब-खुद उससे अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कर दूं पर .....
पर क्या ?
"कुछ नहीं डरतीं हूं "
क्यों डरती हो मेरा मन मुझसे ही पूछता है
जानते हैं  मेरे सामने दो सवाल खड़े हैं एक -क्या, मेरी आसक्ति है या सच्चा प्रेम  है दूसरा:-"क्या बिना उसको जाने मैने प्यार किया वो कितना नैतिक है ."
                आसक्ति की नैतिकता या सच्चे प्रेम का रेखा चित्र क्या है जो मैं देख रही हूं. बस इन्हीं सवालों की भूलभुलैंया में गोते लगा रहीं हूं.
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जी टाक पर उनसे बात करने की गरज़ से काल किया. आज़ तो एक ही क्लिक में उधर से आवाज़ आई "जी बताएं"
बस कुछ नहीं यूं ही..! आप बिजी हैं क्या..?
"हां ज़रा सा कुछ काम निपटा रहा था.."
ठीक है हो जाए तब मुझे बताइये
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इस के बाद एक लम्बा सा विराम  देर तक उनका इंतज़ार करती रही पर वे न आये, आते भी कैसे कोई काहे किसी को बेवज़ह कष्ट देता है यहां. आभासी दुनियां में सत्य की खोज जब खुद सच्ची दुनियां में सत्य नहीं है तो मै क्यों भूसे में सुई खोज रही हूं
चैट विंडो पर उसने लिखा ’जी बताएं ?’..... अब  गोया वो फ़ुरसत हो गया था अब तभी तो उसने ये सवाल किया मुझसे . मन में आया कि कह दूं कि -"बिज़ी हूं पर जाने क्या तिलिस्म था उसमें बेडोर खिंचती चली गई मैं उसकी एक झलक के लिये :-जी बस यूं ही मुझे कविता पर कुछ सजेशंस दीजिये मेल की है कविता आपको....! "
"ओ के देखता हूं "
कुछ देर बाद फ़िर एक कविता जो पूरी तरह बदल चुकी थी मुझे चैट-विंडो पर वापस मिली
अरे आपने तो बदल ही दी
जी , गीत हो या कविता लय ज़रूरी है, छंद हीन कविता में भी तो लय होती है..
जी, पर भाव तो नहीं बदलने चाहिये ... मैने कहा
जी, ध्यान से देखिये फ़िर बात कीजिये ,
गौर से देखा तो कविता के भाव यथावत थे सच वो एक ऐसा इंसान लगा मुझे जो गोया उस पल जब मैं कविता लिख रही थी मेरे मानस में हो .अब समझी कि क्यों आकर्षित करता है वो.
हौले-हौले मेरा नाता गहराता रहा मैं समर्पित सी उसकी अधीरता से प्रतीक्षा करती एक दिन उससे अपने प्रेम का इज़हार कर ही दिया मैने कांपते हाथों से ..."आई........."
और फ़िर उसकी चैट-विंडो अचानक गुम हो गई . मेरा आई०डी० उसने ब्लाक कर दिया . अब उसको मै मेल कैसे करती यह बताने कि मेरा इज़हार ग़लत नहीं बस एक मित्र के लिये था. एक सुलगता सवाल मेरे मानस में छोड़ गया वो वो जो एक नेक इंसान है वरना और कोई होता तो मेरे इज़हार के  जाने क्या क्या...

9 टिप्‍पणियां:

  1. सही दिशा पर लिखी गई बढ़िया कथा!
    नेट के रिश्ते सचमुच ऐसे ही होते हैं!

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  2. आभासी अनुभूतियों पर लिखी गयी एक सत्य कथा, भावनाओं के प्रवाह को आंदोलित करती हुयी न जाने उपसंहार पर कब पहुँच गयी, पता ही नहीं चला और मैं भी कहानी की नायिका की तरह ठगा महसूस कर रहा हूँ , अच्छी कहानी ....बार-बार पढ़ने को विवश कर रही है !

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  3. आपकी कहानी ने तो झकझोर दिया……………कभी कभी वो हो जाता है जो हमने सोचा नही होता……………अंत तक आते आते कहानी कहां से कहां ले गयी , धडकने बढा गयी मगर अंत ने तो हिला ही दिया……………बेहद भावपूर्ण दिल को छूती कहानी बहुत पसन्द आयी।

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  4. रवींद्र जी,शास्त्री जी,वंदना जी, शिवम भाई आभार
    हर कहानी का सत्य होना न होना चिंतन का विषय नही है. चिंतन का कथानक में उठाई समस्या एवम कथा के लेखन की शैली पर होता है. साहित्य यही है सेठ साहब

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  5. ये खिड़की जो बंद रहती है।
    रामसजीवन की प्रेम कहानी


    आभार

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  6. सच्ची कहानी जैसी एक अच्छी कहानी ..शुक्रिया....

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  7. Aise rishte sirf Aiine(darpan)ke saath ho sakte hain...sachhe...pavitra...tasalli dete huye...bahut achhi baat likhi hai aapne.

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