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शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

तुम्हारी पहचान

समझी थी तुमको मैं
अपनी ही तरह
सीधा सादा  ,
तुम जो  ज्ञान और अनुभव
समंदर
और मैं उसी सागर से बने
बादलों से टपकती 
एक नन्ही सी  बूंद !!
कितनी आसानी से
तुमने समझा दिया
अपना व्यक्तित्व
अपने आप मै ,
अपनी आत्मा में
तुम्हे बिना तुम्हारी
विशालता जाने ही
अपने आप मै बसा लिया था मैंने
और जाना है अचानक
आज -
रूप ,रंग ,अस्तित्व
तुम्हारा व्यक्तित्व ...!
सोचती   हूँ
कैसे करूँ
अपने आप का  सामना ?
ये अनजाने में  ही
क्या मुझको मिल गया ?
बहुत छोटी हूँ
तुम्हारे इस अतः हीन ज्ञान के आगे मैं
नहीं समझ पा रही क्या करूँ   ,
क्या कहूँ अपने आप से ?
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