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सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

जाने क्यों इज़हार वो,इक बार भी न कर सकी ?

मौन थी वो प्यार का
इज़हार भी न कर सकीं -
जाने क्यों इज़हार वो,
इक बार भी न कर सकी ?
आज़ उसने घर बुलाया था  मुझे 
कोना-कोना अपने  घर का आज   मुझे.
फ़र्श पे बिखरा बहुत सामान था
घर क्या था 
उसका 
 कबाड़ की  दूकान था
कप सोफ़े पे रखा था 
और टी०वी० पे गिलास
कहां बैठोगे पूछा 
 हो गई फिर वो  उदास
कुर्सियां खिलौनों से अटी थीं 
 बिछायत दीवान की
भी तो फ़टी थी..!
तभी एक कमरे से  घर के 
एक बच्चा सा बड़ा 
और लिपटा उससे बोला दीदी आओ
साथ मेरे आज़ तुम भी गीत गाओ 
आज़ मेरा जनम-दिन है 
केक लाओ गुब्बारे ये अंकल फ़ुला देंगे 
आज़ फ़िर मेरा जनम दिन मना लेंगे 
अविकसित युवा भाई एक वज़ह है
मौन है वो प्यार का
इज़हार भी न कर सकीं -
समझ पाया हूं मैं कि 
 क्यों इज़हार वो,
इक बार भी न कर सकी ?
और फ़िर हौले से एक फ़ूल उसको सौंप कर 
आ गया हूं वापस मैं - अपने घर 
कदाचित सहभागी  बनाएगी वो मुझको 
है यकीं कभी तो अपनाएगी मुझको

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