मेरे हिन्दी व्यंग्य एवम कहानियों तथा उपन्यास के अंग्रेजी अनुवाद हेतु अनुवादक की ज़रूरत है जो अनुवादक के रूप अपने आप को सक्षम महसूस करने वाले मित्र अपना बायोडाटा girishbillore@gmaail.com पर भेज सकेंगें. तथा प्रति 300 शब्द एक पेज अनुमानित हेतु दरें प्रस्तावित कर सकते हैं. चयनित अनुवादक से प्रथम अनुवाद उपन्यास अनुवाद कराया जायेगा
शनिवार, 27 नवंबर 2010
मंगलवार, 23 नवंबर 2010
रात एक चुड़ैल आती है इधर
बैसाख-नंदन |
अल्ल सुबह बाथरूम में दीवार पर चिपकी बिंदी देख कर वो अचानक अजीब सी सिहरन से सराबोर हो गया. उस तरुणी का माथा याद आ गया जो उसके पड़ोस में रहा करती थी. ओर यह उस पर आसक्त सा था. किस्म-किस्म की बिंदियां लगाती थी सुमन . सुमन ने कभी भी इस गधे को घास न डाली पर दत्ते उसके रूपलावण्य के घास टुकुर टुकुर ताकते-ताकते नज़रों से खाकर बैसाख-नन्दन सा तृप्त हो जाता था. हां तो हुआ यूं कि बाथरूम से निकल कर रूम पार्टनर हरिया से :-भाई देखो, बाथ रूम में कौन बिंदियां चिपका गया.
हरिया:- अरे होगा कोई. चल अभी चलते हैं क्लास में देर न हो जाए.
दत्ते के सुबह के सवाल से हरिया का दिमाग शरारत से भर गया सो उसने शाम को बाज़ार से कई किसम की बिंदियां खरीदीं . और बस रात को चुपचाप बाथरूम में जाकर चिपका दीं. दूसरी सुबह फ़िर वही सवाल हरिया बोला:- अबे, सब तेरा वहम है. रात अपने दरवाज़े अंदर से बंद होते हैं. कौन घुसेगा बता...?
हां यार ये तो सोचाईच्च नईं ! हा हा हा
और दौनों मित्र निकल पड़े क्लास के लिये.रात को फ़िर हरिया ने पुरानी बिंदी हटाके नई-डिज़ायनर बिंदी चिपका दीं. तीसरी सुबह तो दत्ते के पसीने छूट गये. बोला भाई अब तू मान या मान सही तो ये है कि कोई चुड़ेल आती है.
हरिया ने खूब समझाया पर वो कहां मानने वाला था.दिल पर छाई सुमन की जगह अब मनोहर-कहानी (जो किताब वो बाबूजी से छिप-छिप के बांचता था)भूत प्रेत विषेशांक में छपी डायन की बिंदी कहानी वाली डायन ने ले ली. ...थी. ! बस अगले ही दिन दत्ते घर वापस . जाने की तैयारी में जुट गया. क्लास में मन न लगा शाम बीमार होने का अभिनय करते हुये अटैची पैक कर ही रहा था कि आस पास के कमरों वाले लड़के जुडे हरिया उसे बताया :-"मूर्ख, ये देख मेरे पास हैं बिंदी के पत्ते मैं बाज़ार से ख्रीद लाया तेरे मन का भय पहचान लिया था मैने ?" सारे लड़के ठहाके मार मार के हंस रहे थे. पर दत्ते के दिल का भीरूपन न निकला . उसने मान तो लिया किंतु इस भय से कि हरिया उसे और भी डरा सकता है भविष्य में रूम बदलने की अर्जी दे आया.
शनिवार, 20 नवंबर 2010
पामेला तुमसे मुझे पहली नज़र में इश्क़ हो गया और कह दिया मैने "आई लव यू पामेला "
पिछले कई दिनों से सोच रहा हूं कि कहूं न कहूं पर आज़ सरे आम कहे देता हूं कि-पामेला तुमसे मुझे पहली नज़र में इश्क़ हो गया " सच कहने का हौसला जिसमें भी कह दे सच के बिना कोई भी व्यक्तित्व कैंचुए का व्यक्तित्व नज़र आता है. हम ने सच कह दिया बेधड़क कह दिया. भई हमारे इस चेहरे के पीछे छिपे धन कमाने के लोभ को देखो. हम अगर गलत हैं तो कहो. हमने अगर कुछ किया है उसे बुला के तो आपके सीने से धुंआ काहे निकला ? बताओ. पामेला बेचारी कित्ती मुसीबत में है देखो न लाखों डालर का कर्ज़ है हमने तो बस कुछ करोड़ रुपल्ली ही दिये हैं उसे. बेचारी महिला उसकी मदद हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा.? अब बताओ भैया ? सच्चे दिल से हमको उनसे प्यार है देखो न लोग कह रहें हैं हमारे चैनल की टी०आर०पी० बढ़ गई झूट उससे ज़्यादा हमारे दिल की धड़कनें ज़्यादा बढ़ी हैं. . हमारी क्या जब उसने धकधक वाला गाना गाया था तब जानतें हैं हमारी उमर से चार गुनी उमर वाले रिटायर्ड दादाजी क्लब के सारे दादाजी चश्मा पौंछ पौंछ के उसे देख रहे थे . सारा देश उस पर मोहित है तो भैया हमारा इज़हार-ए-इश्क़ क्यों गुनाह है ? बताऒ देखिये मुझे ज़्यादा ज्ञान न बताएं अरे जब भी कोई काम करता हूं सवाल उठाते हो अरे इस बच्चे की तस्वीर क्यों दिखा रहे हो इस बच्चे के हमारे रीयलिटी शो क्या लेना देना. अरे हमारी रीयलिटी और इस रीयलिटी में फ़र्क़ है यह रीयलिटी देख के विश्व पर भारत का क्या इम्प्रेशन जाता है मालूम है हमारी रियलिटी से विश्व जानता है कि हम कितने वैभव सम्पन्न है .समझे चलो जाओ बत्ती जलाओ गाड़ी बढ़ाओ खाली-पीली हमारा टाईम खोटी न करो . अपनी दाल हमारी आधी रोटी में न भरो.
अब सुनिये असली धकधक
मंगलवार, 16 नवंबर 2010
प्रेम ही संसार की नींव है
प्रेम दिवस पर स्वामी शुद्धानंद नाथ के जीवन सूत्र प्रस्तुत करना चाहता हूं . जो दिव्य-प्रेम को परिभाषित करतें हैं ये सूत्र स्वामीजी ने "शारदेय-नवरात्र -वर्ष 1960" को के दौरान अपने शिष्यों कों साधना के साथ 1960 में दिनांक 21,22, एवम 23/09/1960 प्रदान किये थे.
21/09/1960
सूत्र::01
"प्रेम " ही संसार की नींव है. वह प्रेम आसक्तिमय हो या साहजिक होवे, प्रेम व्यवहार में सुख और शांति उत्पन्न करता है ,त्याग सेवा और दिव्यता की शिक्षा देता है
प्रापंचिक-संबंध प्रेम की रस्सी बांधी जाये तो वह प्रपंच देवताओं को भी मत्सर उत्पन्न करने वाला होता है,.
आक के प्रपंच और व्यव्हार जीवन में इसका सर्वथा अभाव है. आज़ के संबंध परस्पर हक़ के, अधिकार मांगने वाले ठेके हैं. यह टेका समाज की क्षीण रूढ़ियों से कसा है इसलिये ये संबंध तोड़ना आसान हो गया है.
"आज प्रेम के स्थान में भिन्न-भिन्न रूप में अहंकार विराजमान है "
22/09/1960
सूत्र::02
दुर्बल व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता और प्रेमी दुर्बल नहीं रह सकता धैर्यवान,बलवान,श्रेष्ठ व्यक्तियों को ही प्रेम का वरदान मिलता है. प्रेम शरणागति नहीं चाहता.
प्रेम स्वयं त्याग करता है. प्रेम के अधिराज्य में शोक,दु:ख,और शिकायत नहीं होती. प्रेम-रसायन विपरीतता और प्रतिकूलता को दिव्य समन्वय में परिवर्तित करता है. प्रेम-व्यापार(वाणिज्य) नहीं, न प्रेम मृत्य है जो सब कुछ छुड़ा लेती है. प्रेम है अनंत का अमृत,जब बरसता है तब अनंत का आदेश देता है, और उस चिरचैतन्य की प्राप्ति का मार्गदर्शक होता है
23/09/1960
सूत्र::03
वासना नरक है. प्रेम दिव्य भाव है. अपनी पत्नि से प्यार करना है तो वासना से नहीं अपितु भगवति का एक अलौकिक आविर्भाव- इस नाते से अंतर को उत्कट प्रेम-भाव से भरकर देखो, फ़िर उसके साथ जो भी लीला करोगे वो वासना से निवृत्त होगी. उसमें आपको अप्रतिम सुख होगा. आपके स्पर्श मात्र से उसके हृदय,भावना,वृत्ति इनमें परिवर्तन होगा. वह आपकी अनुगामिनी बन जाएगी.आपकी साधना में शक्ति बनेगी. उस पर जो मोह का पटल है , वह निकल जायेगा. आपका गृह आश्रम्बनेगा, आपके पुत्र बटुक, और कन्याएं भैरवी बनेंगीं. आपके मित्र उपासक बनेंगें.
और आपको आपकी साधना इस ब्रह्माण्ड के नि:स्वासओं का अंग बनकर सुगंधित पुष्प की भांति अपने सौरभ को मुखरित करती रहेगी.
23/09/1960
सूत्र:: 04
मन अकारण प्रसन्न रहे . प्रसन्न्ता ही उसका नित्य भाव हो,वही प्रसन्न्ता प्रति मुहूर्त बढ़्ती जावे. प्रत्येक आचार-विचार, और विक्षोभ उसी प्रसन्न्ता को शतगुणित करे. जैसे अग्नि में आहुति-द्रव्य क्षण में अग्नि को प्रज्जवलित कर स्वयम अग्नि बन जाता है.
प्रसन्नता ही देवता सानिध्य है. सच्चिदानन्द घन परमात्मा का एक अविछिन्न भाग है. प्रसन्नता से आपके सामर्थ्य का प्रवाह-वेग बढ़ता है. प्रसन्न्ता साधना का एकमात्र आधार है. इसलिये प्रसन्न रहो .
प्रसन्नता प्रेम का सिंहासन है, प्रसन्नता ही प्रेम का आदिम-प्रकाश है.
"प्रेम का एक मात्र प्राण है शुद्धानंद (शुद्ध + आनंद) "
सोमवार, 15 नवंबर 2010
मटुकनाथजी को प्रेम को परिभाषित करने की चुनौती
जी हां आज़ मटुकनाथ जी जो अपने आपको प्रेम का देवता माने बैठे हैं को नेट पर प्रेम को परिभाषित करने की चुनौती दी है. सुधिजन के कोई सुझाव/सवाल हों तो भेजिये ताकी इस नाटक के सूत्र धार का मनोवैज्ञानिक आधार सामने ला सकूं . मुझे मालूम है मटुक सिर्फ शब्दों की छाता लगाएंगे. देखूं शायद नौटंकी-सेलिब्रिटी से कुक उगलवा सकूं . मटुक नाथ जी का मेल आई डी है :- julimatuk@gmail.com और मेरा तो आप सब जानते ही हैं वैसे इस बात का ध्यान रखिये मैं प्रेम का विरोधी कदापि नहीं. पर सदाचार तोड़ कर जिन तर्कों से खुद को बचाता है उस बात का विरोधी अवश्य हूं. मेरा मानना है गलतीयों को स्वीकारो . हर धर्म यही कहता है हर धर्म का आधार यही है और अध्यात्म तो कभी भी प्रेम का द्रोह नहीं करता . परंतु सदाचार की व्याख्या भी तो करता है. मैं आज स्पष्ट कर दूं "मै मानता हूं कि मटुकनाथ केवल बायोलाजिकल प्रेम को ’सच्चा प्रेम’ बताते फ़िर रहे हैं. शेष आगे देखतें है क्या कहतें मटुक जी.
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"यदि सहमति मिल गई तो सिर्फ़ मटुक जी से ही बात करूंगा मैं जूली जी से कोई बात नहीं करूंगा "
यदि बात हुई तो सारी चर्चा टेक्स्ट-पोस्ट के रूप में इसी ब्लाग पर पूर्ण होने पर प्रकाशित की जावेगी
इस के लिये उनका जी चैट पर होना ज़रूरी है चैट हेतु आमंत्रण भेज दिया है .
शुक्रवार, 12 नवंबर 2010
अंतर्वेदना का चित्र गीत : उत्तमा दीक्षित की तूलिका लता जी मदन मोहन साहब के सुर
उत्तमा दीक्षित जी की तूलिका से उभरे चित्र को इस गीत के सन्दर्भ में देखिये माई रे मैं कासे कहूं ?फिल्म दस्तक के इस गीत को लता मंगेशकर मदन मोहन ने गाया है , अगर वायलिन पे सुना जाए तो प्रभाकर जोग साहब का कमाल भी कम नहीं. आज़ जिस भाव से इस चित्र को देखा तो तुरंत दस्तक के गीत का याद आना मेरे लिये रोमांचित करने वाला एहसास था. सुना हाँ खूब सुना . फिर क्या हुआ इस बात को आपसे शेयर न कर पाउंगा जानतें हैं क्यों ? आप को वो एहसास नहीं हो पाएगा कालजयी कला का आनंद आप भी उठाएं आपका अपना चिन्तन अपने भाव हैं मेरा हस्तक्षेप जायज़ नहीं.
सोमवार, 1 नवंबर 2010
प्रकृति-प्रेम कथा :मल्हार ब्लाग पर है
पा.ना. सुब्रमणियन जी के ब्लाग मल्हार ब्लाग पर मुझे जो मिला उसे देख कर मन में प्रकृति प्रेम का नया संचार अनुभूत हुआ. उसे वर्णित करने मेरे पास अभी शब्द कम हैं. हिन्दी-अंग्रेजी में समान अधिकार विषय सामग्री भरपूर उपयोगी ही लाते हैं सुब्रमण्यम साहब. इसी पोस्ट के ज़रिये हम पहुंच गये यू-ट्यूब पर प्रस्तुत वीडियो The Tree Hugger - MAAC 24FPS Animation Awards 2009 तक आप भी ज़रूर जाएं देखें इस अनोखी प्रेम कथा को
अंग्रेजी पाठकों के लिए लिंक ये रही :-Thousand words in snap
साभार : मल्हार
अंतिम कविता 02 : तुम खूबसूरत हो
मुझे मालूम है जाना है मुझे
जीवन अब महा मिलन की ओर
मुझे जाना ही होगा
पूरे उत्साह से जा रहा है.
अपने अंतस में निर्वात पा रहा है....
कल जो आग के एक शरारे से तन दहक जाता था
उसी आग की मुखाग्नि
और होगा
जीवन अब महा मिलन की ओर
मुझे जाना ही होगा
पूरे उत्साह से जा रहा है.
अपने अंतस में निर्वात पा रहा है....
कल जो आग के एक शरारे से तन दहक जाता था
उसी आग की मुखाग्नि
और होगा
एक वेदना का अंत
पीछे बिसुरते चेहरे
शोक होगा अनंत
तब जब कोई मुझे तलाशेगा
कोई किताबों में
कोई अंतरजाल पर
कोई बच्चा जिसे चूमा था
वो अपने गाल पर
वो बहाने जिनने कोहनी ताख बांधी थी राखियाँ
वो दोस्त जिनने खाई थी झूठी साखियाँ
वो गिरगिट से रंग बदलते
लोग
वो पल भर में बदलते ऊपर के लोग
सब यहीं मुझे खोजेंगे
उनकी इस तलाश में शामिल रहूँगा
अभी उनसे कुछ न कहूंगा
अपने पीछे छोड़ जाउंगा बहुतेरे सवाल
कुछ दर्शन का पाथेय होगें
कुछ पर होंगे बवाल
जी तब आभासी दुनियाँ के लोग
शोक मनाएंगे
जी इसी कविता को सबूत बनाएंगे
और में नि:शब्द रहूंगा तब
मेरा जीवन बोलेगा
हर बात में कोई न कोई सवाल घोलेगा
उसे मिल जाएगी ""पाप-पुण्य" की परिभाषा
वो जिसे मैने सर दिया बैठने
वो जिसके अस्तित्व को स्वीकारा
वो जिसके पिता को बचाने देह से निकाला खून
हाँ वही जिसने दु:ख देकर
उससे ज़्यादा जलाया मेरे पिता का खून
उन सबको आखरी प्रणाम
मेरा अंत उन्ही सम्भ्रान्तो के नाम
दीदी भूखे नंगे पिता के नेत्र हीन बच्चे मंगल का ध्यान रखना
जिसे हम काल के गाल से निकाल कर लाए थे
उन तुलसी के विरवों को जिन्हैं गांव-गांव लगवा कर आए थे.
सुनो दोस्त सच कहना मेरी आदत है
इसा को सूली पर भेजना तुम्हारी फ़ितरत है
कोइ दोष नहीं तुम्हारा
शायद घुट्टी तुम्हारी मां ने न बनाई होगी.
बहुत दर्द भोगा है
क्या तुम मेरी मुस्कुराहट बांच नहीं पाये
खैर तुम्हारे नाम नही लिख रहा हूं
महामिलन मेरी नियति है
तुम तो बस साधन हो
उन नेह निवालों की सौगंध
तुम्हैं उनका स्वाद
होगा ही याद
अंतिम बार खाने ज़रूर आना
मेरी देह के सामने अपनी विजयी देह ज़रूर लाना
मुझे महा-मिलन में भी साथ चाहिये तुम हां केवल तुम
तुम जो कायर थे जो भयातुर थे षड़यंत्री थे
फ़िर भी एक बीमार बाप के बेटे हो
बच्चों के पिता हो
तुमको माफ़ करना ज़रूरी है
तुम क्या जानो तुमने क्या किया
मासूम भी तो पाप कर लेते है
मुझे तुमको सबको माफ़ करना है
यही तो इसा ने किया था
राम ने भी कृष्ण ने भी
उस अदालत को भी माफ़ करता हूं जो तुम्हारी वज़ह से इल्ज़ाम लगा रही है
मेरे अस्तित्व को तुम्हारे साथ लेकर मिटा रही है
तुम क्या पूरी दुनिया मुझे मिटाने का सामर्थ्य खो चुकी है
चेतना संवेदना सब कुछ दुनिया से खो चुकी है
तुमने शिखर देखे कहां हैं
मैने जिनको पल में पार किया है
इन बैसाखियों से जिसमें शक्ति उसने दी जिससे मेरा महा मिलन होना तय है
इस दीवाली तुम्हारी शुभ कामनाएं चाहिये महा मिलन के लिये
मुझसे घृणा करने वालो
स्वागत है तुम्हारा उनसे अधिक जो मुझसे नेह करते हैं
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तूने दस्तक ज़रूर दी होगी..? मै वो आवाज़ नहीं सुन पाया कितनी आवाज़ें गिर्द मेरे हैं तेरा एहसास नही हो पाया ! ************** हर तरफ़ शोर ...